जबलपुर। हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल (National Game Hockey) है और ओलंपिक में हॉकी ने एक बार फिर मेडल जीता है, लेकिन स्थानीय स्तर पर हॉकी के हालात ठीक नहीं है. मैदान खाली पड़े हैं और खिलाड़ी खेलने नहीं आ रहे हैं. ऐसे में भारतीय हॉकी टीम (Indian Hockey Team) को प्रतिभावान खिलाड़ी कैसे मिलेंगे.
कैसे बनती है राष्ट्रीय टीम
हॉकी टीम स्तर पर खेली जाती है. इसमें सबसे पहला और छोटा पड़ा स्कूल लेवल टूर्नामेंट (School Level Tournament) होता है, जहां सभी निजी और सरकारी स्कूलों के बच्चों को खेलने का मौका दिया जाता है. वह अपनी टीम बनाकर खेलते हैं. इनमें से खिलाड़ियों का चयन किया जाता है. चयनित खिलाड़ी संभाग स्तरीय खेलकूद प्रतियोगिता में अपना लोहा मनवाते हैं. इसके बाद राज्य स्तरीय और फिर राष्ट्रीय स्कूल चैंपियनशिप भी होती है. इसमें से अच्छे खिलाड़ियों का चयन किया जाता है.
टैलेंट सर्च अभियान से एकेडमी खोजती है खिलाड़ी
विश्वविद्यालयों में भी खेलकूद प्रतियोगिताएं होती हैं. इनमें कॉलेज और यूनिवर्सिटी के छात्र आपस में खेलते हैं, जो अच्छे खिलाड़ी होते हैं उनकी एक टीम बनाई जाती है. यह टीम यूनिवर्सिटी लेवल टूर्नामेंट (University Level Tournament) में खेलती है. इनका भी एक राष्ट्रीय टूर्नामेंट होता है. खिलाड़ियों को खोजने की तीसरी प्रक्रिया एकेडमी के जरिए होती है. एकेडमी 14 साल से कम के बच्चों को टैलेंट सर्च (Talent Search for Hockey) के माध्यम से खोजते हैं. इन्हें एकेडमी में फ्री ऑफ कॉस्ट ट्रेनिंग (Hockey Training) दी जाती है. यहां से निकले हुए खिलाड़ी राष्ट्रीय टीम के दावेदार होते हैं. इसके साथ ही स्थानीय खेल विभाग कुछ ऐसे बच्चों को भी तैयार करता है, जो स्कूल यूनिवर्सिटी और एकेडमी नहीं जा सकते, उन्हें कोचिंग दी जाती है.
हॉकी में राजनीतिक दखलअंदाजी
ज्यादातर खेल टूर्नामेंट सरकार से पैसा लेकर फेडरेशन और एसोसिएशन करते हैं. इसके साथ ही स्कूल और कॉलेजों में जो टीम खेलती हैं उसमें भी राजनीतिक दखल (Political Interfere) से खिलाड़ी तय किए जाते हैं. जबलपुर के खेल पर शोध करने वाले हॉकी के कोच डॉक्टर सुनील दत्त लखेरा का कहना है कि जो सिफारिश से आता है. वह अच्छा नहीं होता, जिसके चलते टीम में दमदार खिलाड़ियों का चयन नहीं हो पाता.