जबलपुर। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने हर आम से लेकर खास को झकझोर दिया है. काम-धंधे ठप हो गए तो वहीं लाखों लोगों पर बेरोजगारी का संकट मंडराने लगा है. यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज की सूची में शामिल जबलपुर भेड़ाघाट की विश्व विख्यात संगमरमर की मूर्तिकला के लिए भी पहचाना चाहता है. लॉकडाउन खुलने के बाद से न तो खरीदार मिल रहे हैं और ना ही मूर्तियों की अभी कोई डिमांड है. धार्मिक कार्यक्रम भी बंद हो जाने से भगवान की बनी मूर्तियों की बिक्री भी नहीं हो रही है.
मूर्तिकारों के हुनर को लगा कोरोना का ग्रहण संगमरमर दूधिया पत्थर से बनी है मूर्तियां
भेड़ाघाट के शिल्पकारों की हाथों की कारीगरी किसी जादू से कम नहीं है. संगमरमर पत्थर यहां का एक विशेष दूधिया सफेद पत्थर है. जिसे धार्मिक आस्था के रूप में भी पूजा जाता है. इसी कारण देवी-देवताओं से लेकर विशेष मूर्तियां इसी पत्थर से बनाई जाती है. यहां के कारीगर अपने हाथों के हुनर से एक पत्थर में जान फूंकने का काम करते हैं. और उनके इस हुनर की डिमांड देश के विभिन्न राज्यों के साथ ही विदेशों तक रहती है.
शिल्पकारों पर छाया आर्थिक संकट
लॉकडाउन के बाद से मूर्तिकला पर भी ग्रहण लग गया था. दो महीने से मूर्ति बनाने का काम धंधा ठप हो गया था जो मूर्तियां बनी हुई थी उसे बेचने के लिए भी कोई खरीददार नहीं मिल रहा है. शिल्पकार बताते हैं कि दो महीने तक एक भी मूर्ति नहीं बिकी है. ऐसे में जो कुछ पैसे थे वो भी खत्म हो गए. उनका कहना है कि अब उनके सामने आर्थिक संकट आ गया है. जिससे कि परिवार को चलाना भी मुश्किल हो रहा है.
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कोरोना के आगे बेनस शिल्पकार
लॉकडाउन के बाद से धार्मिक कार्यक्रम, मंदिर प्रतिष्ठा, मूर्ति स्थापना के कार्यक्रम भी निरस्त हो चुके थे. ऐसे में मूर्तियों की सबसे ज्यादा डिमांड इन्हीं में रहती है. लेकिन पिछले दो महीने से कोई धार्मिक कार्यक्रम आयोजित नहीं हुआ है. जिन कार्यक्रमों के मुहूर्त थे वे भी अब आगे मुहूर्त देखने के बाद होंगे. तब तक मूर्तियों की डिमांड भी नहीं है. शिल्पकार गोपाल सिंह का कहना है कि मूर्तियों के जो ऑर्डर पहले से उनके पास थे. अप्रैल और मई महीने में मूर्तियों की स्थापना के कारण मूर्तियां देनी थी उनको उन्होंने तैयार कर दिया।.लेकिन अब वे भी कार्यक्रम निरस्त होने से ले जाने के लिए तैयार नहीं हैं. ऐसे में उनके किए काम के किए हुए पैसे भी अटक गए है.
देश विदेश तक मूर्तियों की डिमांड
भेड़ाघाट के शिल्पकार के हाथों की बनी मूर्तियां ही नहीं बल्कि उनकी ओर से बनाए जाने वाले व्यक्तिगत चेहरे की कारीगरी की डिमांड भी विदेशों तक है. कारीगर बताते हैं कि उनकी ओर से बनाई मूर्तिया कई प्रदेशों सहित देश विदेश में डिमांड रहती है. इसी कारण यहां के कई कलाकार अन्य प्रदेशों में रहते हैं. लेकिन कोरोनाकाल ने उनकी कला पर भी ब्रेक लगा दिए है.
150 से ज्यादा परिवार की रोजी-रोटी पर संकट
शिल्पकारों के करीब 150 परिवार हैं. जिनका पुश्तैनी काम पत्थरों से बनाई जाने वाली मूर्तिकला है. कई युवा भी इस कला में निपुण हैं. जिनके हाथों से बनी मूर्तियां बहुत ही आकर्षक होती है. मूर्तियों से होने वाली आमदनी से ही इनका परिवार चलता है. बता दें कि भेड़ाघाट में कई परिवार ऐसे हैं जिनका पूरा परिवार ही मूर्तियों के निर्माण में जुटा है. लेकिन पिछले दो महीने से वो बेरोजगार हो चुके हैं.गौरतलब है कि लॉकडाउन का असर हर जगह पर पड़ा है. सरकार उद्योगों को एक बार फिर खड़ा करने के लिए मदद कर रही है तो वहीं मूर्तिकला से जुड़े यह छोटे उद्योग भी सरकार की ओर उम्मीद लगाए देख रहे हैं.