इंदौर। देश भर में बिजली कंपनियों के निजीकरण से नाराज कर्मचारी अब मोदी सरकार की निजीकरण की नीति का विरोध कर रहे हैं. इस क्रम में आज पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के कर्मचारी भी लामबंद होकर जिला कलेक्ट्रेट पर विरोध करने पहुंचे, जहां उन्होंने नारेबाजी कर मोदी सरकार की निजीकरण की नीति के खिलाफ मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा.
मध्य प्रदेश समेत विभिन्न राज्यों में विद्युत वितरण कंपनियों के निजीकरण को लेकर केंद्र सरकार द्वारा लिए गए फैसले के बाद केंद्रीय स्तर पर निविदा जारी की गई है. इसके बाद प्रदेश में भी विद्युत वितरण कंपनियों के निजीकरण की तैयारी की गई है. इधर केंद्र सरकार के इस फैसले की सूचना मिलने के बाद ही विद्युत वितरण कंपनियों के करीब डेढ़ दर्जन कर्मचारी संगठनों ने एकजुट होकर निजीकरण के विरुद्ध प्रदर्शन शुरू कर दिया है. अधिकारियों और कर्मचारियों को उम्मीद है कि जिस प्रकार उत्तर प्रदेश में विरोध के बाद सरकार को निजीकरण के मामले में अपना फैसला वापस लेना पड़ा, उसी तरह मध्य प्रदेश में भी जन जागरण अभियान और कर्मचारियों के विरोध के कारण सरकार को इस दमनकारी नीति को बदलने पर मजबूर किया जाएगा. आज इस मामले में अधिकारियों और कर्मचारियों ने अपनी 3 प्रमुख मांगों को भी पूरा करने की मांग की. कर्मचारी संघ के सदस्य जीके वैष्णव ने बताया कि निजीकरण रोकने के साथ ही कंपनी में आउट सोर्स कर्मचारियों का संविलियन किया जाए. इसके अलावा संविदा कर्मचारियों का नियमितीकरण किया जाए.
निजीकरण के विरोध में उतरे बिजली कर्मचारी, कलेक्ट्रेट में सौंपा ज्ञापन - मोदी सरकार
निजीकरण के विरोध में बिजली कर्मचारी और अधिकारी सड़कों पर उतरे. जिला कलेक्ट्रेट पहुंचकर नारेबाजी कर मोदी सरकार की नीति के खिलाफ ज्ञापन भी सौंपा.
बीमा कंपनियों और बैंकों के निजीकरण के प्रस्ताव पर कर्मचारियों का प्रदर्शन
निजीकरण के दौर में आई उपभोक्ताओं की याद
आमतौर पर बिजली उपभोक्ताओं के हितों से किनारा करने वाले बिजली कंपनी के अधिकारी और कर्मचारी अब निजीकरण के नाम पर उपभोक्ताओं से सहयोग की अपील कर रहे हैं. अधिकारियों का आरोप है कि अगर बिजली कंपनियों का निजीकरण हुआ, तो किसानों की सब्सिडी खत्म हो जाएगी. इसके अलावा गरीबों को सस्ती बिजली नहीं मिल पाएगी. वहीं छोटे वक्ताओं को भी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा.