इंदौर।जिंदगी से विदाई के बाद विधि-विधान पूर्वक अंतिम संस्कार सभी धर्मों में हर व्यक्ति का अधिकार माना गया है, लेकिन कोरोना के कहर के चलते संक्रमित लोगों से यह अधिकार भी छिन सा गया है. फिलहाल प्रदेश के विभिन्न जिलों में इस समय जितनी भी मौत कोरोना के कारण हो रही हैं, उन मृतकों के संक्रमित शवों को अंतिम संस्कार और शव यात्राएं भी नसीब नहीं हो रही है. इंदौर में आलम यह है कि कई लोग डेड बॉडी श्मशान के बाहर ही छोड़कर जा रहे हैं. कई ऐसे हैं जो संक्रमण के खौफ से मुक्तिधाम में अपनों के शवों के पास भी नहीं जाना चाहते.
- अंतिम संस्कार की रस्में पूरी कराने वाले पंडित दुखी
कोरोना के संक्रमण के कारण अपनों से दूर होने की सामाजिक मजबूरी के बावजूद इलाज और व्यवस्थाओं के अभाव में अपना जीवन गंवाने वाले मृतकों को अंतिम समय में भी अपनों का साथ नहीं मिल रहा है. दरअसल अस्पताल से लेकर श्मशान घाट तक महामारी का खौफ इस कदर है कि अपनों को गंवाने के बाद खुद की सुरक्षा की मजबूरी के कारण लोग शवों को लावारिस हाल श्मशान के बाहर छोड़कर जा रहे हैं. इंदौर के मुक्ति धामों में स्थिति यह है कि शहर के 25 से 30 संस्थानों में आने वाले संक्रमित लोगों की संख्या 3 से 4 गुना तक बढ़ गई है.
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ऐसी तमाम मौतों के मामलों में ना तो शव यात्राएं निकल पा रही हैं, नाही श्मशान में विधि-विधान से उनका अंतिम संस्कार हो पा रहा है. अस्पतालों से सीधे संक्रमित शव श्मशान में भेजे जा रहे हैं. उनके साथ इक्का-दुक्का परिजन ही मौजूद रहते हैं. कई स्थानों पर स्थिति ऐसी बन रही है कि मृतकों के परिजन श्मशान के कर्मचारियों को ही दाह संस्कार का बोलकर संक्रमण के डर से श्मशान के गेट से अंदर ही नहीं आ रहे हैं. यह स्थिति देखकर अब तक श्मशान में अंतिम संस्कार की रस्में पूरी कराने वाले कर्मकांडी पंडित भी दुखी है.
- अस्थियों का भी नहीं हो रहा विसर्जन
इंदौर के सभी मुक्तिधामों में बीते 2 सप्ताह से स्थिति ऐसी है कि संक्रमित शवों को जलाए जाने के बाद लोग उनका विधि-विधान से ना तो अस्थि संचय कर रहे हैं, और नाही वर्तमान दौर में नदियों में अस्थि विसर्जन कर पाने की स्थिति में हैं. अधिकांश मामलों में कई परिवार मृतक की अस्थियों को मुक्तिधाम के लॉकर में ही छोड़कर जा रहे हैं. जिन का विसर्जन संभवत शहर में स्थितियां सामान्य होने के बाद ही हो सकेगा.