ग्वालियर। महिला एवं बाल विकास विभाग आंगनबाड़ी केंद्रों की बाल शिक्षा केंद्रों में नया प्रयोग करने जा रहा है. यहां 3 से 6 वर्ष तक के बच्चों को दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियों के माध्यम से नैतिक शिक्षा दी जाएगी. यह प्रयोग सबसे पहले प्रदेश की 314 आंगनबाड़ी केंद्रों में शुरू होगा. एक साल बाद से पूरे आंगनबाड़ी केंद्रों में इसे अपनाया जाएगा. इससे शिक्षा सरल होगी और बच्चे पढ़ने में रुचि दिखाएंगे.
आंगनबाड़ी केंद्रों में किताबी ज्ञान के साथ मिलेगा नैतिक ज्ञान, दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियों से होगी शुरुआत
आंगनबाड़ी केंद्रों के बाल शिक्षा केंद्रों में 3 से 6 वर्ष तक के बच्चों को दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां पढ़ाई जाएंगी, ताकि उनमें नैतिक मूल्यों का विकास हो सके.
इससे पहले शिक्षाविदों, मनोवैज्ञानिकों के साथ टीचरों की एक टीम का सर्वे कराया गया है, जिसका मकसद बच्चों में सीखने की कला का जल्द विकास करना है. काफी मंथन के बाद निष्कर्ष निकला कि पहले बच्चे दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियों से काफी प्रभावित थे. इन कहानियों से उन्हें जीवन में आने वाली कठिनाईयों को सरलता से सुलझाने से लेकर नैतिक मूल्यों और व्यावहारिक ज्ञान भी मिलता था. उनका परिणाम यह होता था कि जब बच्चे गलत संगत में आते थे, तो उन्हें बचपन में मिली सीख इन विसंगतियों से दूर रहने की प्रेरणा देती थी.
महिला एवं बाल विकास विभाग के संयुक्त संचालक सुरेश तोमर का कहना है कि पहले जब संयुक्त परिवार हुआ करते थे, तो दादा-दादी, नाना-नानी ही बच्चों का पालन-पोषण करते थे. वह उन्हें किस्से कहानियों के माध्यम से नैतिक शिक्षा और संस्कार देते थे, लेकिन अब जब एकल परिवार हो गए हैं, तो बच्चों को कहानियों के माध्यम से वो संस्कार नहीं मिल पा रहे हैं. इसलिए जरूरी है कि आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों को कहानियां सिखाई जाएं, ताकि उनके अंदर नैतिक शिक्षा और संस्कार का भाव पैदा हो.