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मंत्री जनजातीय विभाग के गृहजिले में आदिवासी बच्चों की सुरक्षा से खिलवाड़, हॉस्टल में छाया अंधेरा

मध्यप्रदेश सरकार लाख दावे करे बेहतर शिक्षा व्यवस्था के, लेकिन डिंडोरी जिले की खबर सरकार के इंतजामों की पोल खोलने के लिए काफी है. मामला प्रदेश के जनजाति कार्य मंत्री ओमकार सिंह मरकाम के गृह जिले का है. जिनके विधानसभा क्षेत्र के हॉस्टलों में अंधेरा छाया रहता है.

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Published : Aug 2, 2019, 11:45 PM IST

हॉस्टल में अंधेरा

डिंडोरी।प्रदेश सरकार बेहतर शिक्षा सुविधा के लाख दावे करे. लेकिन डिंडौरी के आदिवासी छात्रावास से आई ये तस्वीरें उन दावों पर सवालिया निशान खड़े कर देती है. जनजातीय कार्यमंत्री ओमकार सिंह मरकाम के गृह जिले सारंगी ब्लॉक के आदिवासी छात्रावास में रहने वाले 50 से ज्यादा छात्रों के लिए सुविधाएं तो दूर की बात, सुरक्षा तक के कोई साधन नहीं है.

मंत्री जनजातीय विभाग के गृहजिले में आदिवासी बच्चों की सुरक्षा से खिलवाड़

लापरवाही का आलम यह है कि बच्चों को सोने के लिए पर्याप्त पलंग तक नहीं है. उपर से रात में लाइट जाने के बाद रोशनी करने के लिए एक अदद मोमबत्ती तक हॉस्टल में नहीं मिलती. ऐसे में सभी बच्चे रात के घुप्प अंधेंरे में रहने को मजबूर हैं. जिनकी सुरक्षा के लिए छात्रावास में कोई साधन नहीं है, छात्रों की सुरक्षा के लिए तैनात रहने वाला चपरासी हमेशा नदारद रहता है, तो वहीं अधीक्षक हॉस्टल में रहने के बजाए अपने घर में आराम फरमाते हैं. ऐसे में सवाल यह है कि अगर छात्रावास में कोई हादसा हो जाए, तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा.

मामले में जब बच्चों से बात की गई तो उनका जवाब भी यही था, कि न तो चपरासी रहता है और न ही अधीक्षक, हॉस्टल में रहते है. कहने को तो आदिवासी छात्रों को सुविधा देने के नाम पर सरकार हर साल हॉस्टलों पर लाखों रुपए का बजट जारी करती है. लेकिन 50 बेड वाले इस हॉस्टल में आदिवासी बच्चे डर के साए में रहने को मजबूर हैं, उन्हें घुप्प अंधेरे में रहना पड़ता है, हॉस्टल में लाइट जाने पर उन्हें मोमबत्ती तक उपलब्ध नहीं करवाया जाता है.

हॉस्टल अधीक्षक और चपरासी की इस लापरवाही को लेकर जब कलेक्टर से बात की गई तो, उन्होंने तत्काल कार्रवाई की बात कही है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इन छात्रावासों के संचालन की जिम्मेदारी आदिवासी विकास विभाग की होती है, लेकिन जब आदिवासी मामलों के मंत्री ओमकार सिंह मरकाम के गृह जिले में ही ऐसे हालत होंगे, तो फिर प्रदेश के अन्य आदिवासी छात्रावासों के क्या हालात होंगा.

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