डिंडोरी।'गोदना' का शाब्दिक अर्थ शरीर में किसी नुकीली चीज से छेद करने से है. इसीलिए जब किसी को कोई नुकीली चीज शरीर के भीतर चढ़ाई जाती है तो उसे गोदना कहा जाता है. लेकिन बैगा आदिवासियों में गोदना का अर्थ शरीर पर कुछ आकृतियां बनवाने से है और इसे कला का नाम भी दिया गया है. इसमें गोदना करने वाले कलाकार का कैनवास किसी का शरीर होता है और उसके पास ब्रश या पेन की जगह नुकीली चीज होती है. रंगों की जगह कुछ जंगली फल, पलाश के फूल और प्राकृतिक रंग होते हैं. जिन्हें एक सुई के जरिए शरीर में सुराग करके डाला जाता है. यह त्वचा पर ऐसा स्थाई प्रभाव छोड़ते हैं कि इसका रंग शरीर पर जीवन भर बना रहता है.
अनोखी मान्यता:बैगा जनजाति की महिलाएं पूरे शरीर पर गोदना करवाती हैं. दरअसल इनकी मान्यता है कि गोदना मृत्यु के बाद भी शरीर के साथ जाता है और जब किसी महिला की मौत हो जाती है तो वह मृत्यु लोक में गोदना बेचकर अपना जीवन यापन करती है. इसलिए बैगा महिलाएं ज्यादा से ज्यादा गोदना करवाने के लिए इच्छुक रहती हैं. 'गोदना' की आकृति आभूषण के रूप में होती है, इसलिए शरीर में जहां-जहां आभूषण पहने जा सकते हैं वहां यह आकृतियां बनवा लेते हैं और यह आकृतियां आभूषणों के जैसी ही दिखती है. इसलिए इनके माथे पर कानों में हाथों में गले में पीठ पर पैर में घुटनों तक मतलब शरीर में जहां-जहां भी आभूषण पहने जाते हैं, वहां आभूषणों की आकृति गोदना के जरिए उकेरी जाती है. इसमें इन महिलाओं को असहनीय तकलीफ से गुजर ना होता है लेकिन फिर भी यह परंपरा निभाती हैं.
महंगा सौदा:बैगा जनजाति के लोग बेहद गरीब होते हैं. इनके पास पैसे नहीं होते. एक बैगा महिला के पूरे शरीर पर गोदना करने के लिए ₹1000 से ज्यादा का खर्च होता है, जो इनके लिए बड़ी रकम है. लेकिन यह इसके लिए पैसा बचाती हैं और शरीर पर टैटू बनवाती हैं. एक जमाने में ऐसी मान्यता थी कि यदि बैगा महिला अपने शरीर पर गोदना नहीं करवाती थी तो उसकी शादी नहीं होती थी. इसलिए तकलीफ देने के बाद भी गोदना करवानी पड़ता था. वहीं, दूसरे यह बैगा महिलाओं की पहचान थी. लेकिन बदलते दौर में स्कूलों के आने के बाद इनके गोदना पर सवाल खड़े होने लगे और धीरे-धीरे कुछ बेगा बच्चों ने इससे किनारा करना शुरू कर दिया है. इसलिए इस परंपरा से जुड़े कलाकारों के सामने भी रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.