पथरीली डगर से टकराते कोमल कदम, सात दशक बाद भी बैगाओं के नहीं बदले हालात
बैगा आदिवासी रोजाना पथरीली राहों से जंग लड़ते हुए अपनी मंजिल तक पहुंचते हैं. मेंहदवानी विकास खंड के चिरपोटी रैयत ग्राम पंचायत के बैगा बाहुल्य नरवा टोला और घुघरा टोला में निवास करने वाले लोग आजादी के सात दशक बाद भी रास्ते के लिए तरस रहे हैं.
डिंडौरी। रास्ते में बिखरे नुकीले पत्थर और उस पर पड़ते कोमल कदम और उस पर मुंह से निकलती आह के बीच मंजिल तक का सफर तय करते बड़े-बुजुर्ग-महिलाएं और मासूम. कहने को तो ये राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र हैं, बावजूद इनकी खोज-खबर लेने वाला कोई नहीं है. यही वजह है कि ये इसे ही अपनी नियति मान चुके हैं और रोजाना पथरीली राहों से जंग लड़ते हुए अपनी मंजिल तक पहुंचते हैं. मेंहदवानी विकास खंड के चिरपोटी रैयत ग्राम पंचायत के बैगा बाहुल्य नरवा टोला और घुघरा टोला में निवास करने वाले लोग आजादी के सात दशक बाद भी रास्ते के लिए तरस रहे हैं.