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पथरीली डगर से टकराते कोमल कदम, सात दशक बाद भी बैगाओं के नहीं बदले हालात

बैगा आदिवासी रोजाना पथरीली राहों से जंग लड़ते हुए अपनी मंजिल तक पहुंचते हैं. मेंहदवानी विकास खंड के चिरपोटी रैयत ग्राम पंचायत के बैगा बाहुल्य नरवा टोला और घुघरा टोला में निवास करने वाले लोग आजादी के सात दशक बाद भी रास्ते के लिए तरस रहे हैं.

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Published : Nov 26, 2019, 3:28 PM IST

Updated : Nov 26, 2019, 3:38 PM IST

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इतनी आसान नहीं है ये राहें

डिंडौरी। रास्ते में बिखरे नुकीले पत्थर और उस पर पड़ते कोमल कदम और उस पर मुंह से निकलती आह के बीच मंजिल तक का सफर तय करते बड़े-बुजुर्ग-महिलाएं और मासूम. कहने को तो ये राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र हैं, बावजूद इनकी खोज-खबर लेने वाला कोई नहीं है. यही वजह है कि ये इसे ही अपनी नियति मान चुके हैं और रोजाना पथरीली राहों से जंग लड़ते हुए अपनी मंजिल तक पहुंचते हैं. मेंहदवानी विकास खंड के चिरपोटी रैयत ग्राम पंचायत के बैगा बाहुल्य नरवा टोला और घुघरा टोला में निवास करने वाले लोग आजादी के सात दशक बाद भी रास्ते के लिए तरस रहे हैं.

इतनी आसान नहीं है ये राहें
विकास की राह देखते कितनी आंखें हमेशा के लिए बंद हो गईं तो कितनी पथरा गईं, फिर भी लोग मूलभूत सुविधाओं के मोहताज हैं. विष्णु बैगा बताते हैं कि अब तक पक्की सड़कें भी नसीब नहीं हुईं, इस दौरान कितनी सरकारें भी बदलीं, पर इनके हालात आज भी जस के तस हैं. आजादी के बाद से कितनी सरकारें बदलीं, विकास की नई-नई योजनाएं बनीं, यहां तक की राष्ट्रपति ने बैगा आदिवासियों को गोद भी ले लिया, इसके बावजूद इनके हालात नहीं बदले, जब राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों को सरकारें इस कदर दरकिनार करती रही हैं तो बाकी आवाम का क्या होगा
Last Updated : Nov 26, 2019, 3:38 PM IST

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