धार।भोजशाला में चार दिवसीय बसंत पंचमी उत्सव की शुरुआज आज से हो गई है (basant panchami in bhojshala). बसंत पंचमी के मौके पर धार के भोजशाला स्थित सरस्वती मंदिर में ज्ञान की देवी मां सरस्वती का जन्मोत्सव बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस मौके पर भोजशाला को दुल्हन की तरह सजाया जाता है. शनिवार को पूरे दिन सरस्वती मां की पूजा की जाएगी. इसके बाद यहां तीन दिन अन्य कार्यक्रम होंगे. बसंत पंचमी पर हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु भोजशाला पहुंचते हैं. इस दौरान श्रद्धालु मां सरस्वती की पूजा-अर्चना कर उनका आशीर्वाद लेते हैं.
धार भोजशाला में बसंत पंचमी सुरक्षा के कड़े इंतजाम
हाल के कुछ सालों में हुए विवाद के बाद और इंटेलिजेंस इनपुट्स के आधार पर इस बार भी बसंत पंचमी पर इतने बड़े आयोजन को देखते हुए सुरक्षा चाक चौबंद की गई है. भोजशाला में बड़ी संख्या में पुलिस बल को तैनात किया गया है. यहां कड़ी निगरानी रखने के निर्देश हैं. अफसरों के साथ सरकार की भी निगाह भोजशाला पर ही बनी हुई है. इस भोजशाला में मंगलवार को जहां पूजा होती है, तो वहीं शुक्रवार को उसी जगह पर नमाज अदा की जाती है. यह बाकायदा सरकारी अनुमति से होता है.
कब हुआ था भोजशाला का निर्माण
भोजशाला का निर्माण राजा भोज ने मां सरस्वती के मंदिर के रूप में करवाया था. ऐसा कहा जाता है कि राजा भोज मां सरस्वती के अनन्य भक्त थे. इसी से प्रसन्न होकर उन्हें मां सरस्वती उन्हे दर्शन दिए थे. जिस रूप में मां सरस्वती ने राजा भोज को दर्शन दिए थे, उसी स्वरूप में मूर्ति बनवाकर इस भोजशाला में स्थापित की गई. इसके बाद से यहां हर साल सरस्वती पूजा पर 4 दिन के कार्यक्रम का आयोजन होता है. इस दिन भारी भीड़ भोजशाला में उमड़ती है. बसंत उत्सव को लेकर हिंदू समाज में काफी उत्साह रहता है. महाराज भोज स्मृति वसंतोत्सव समिति हिंदू समाज के घर-घर जाकर सभी को पीले चावल देकर निमंत्रण दिया गया है. इस साल भोजशाला में 988वां बसंत पंचमी मनाया जा रहा है.
भोजशाला का इतिहास और विवाद
भोजशाला लंबे समय से विवाद में रही है. करीब 800 साल पुरानी इस भोजशाला को लेकर हिंदू-मुस्लिम समुदाय में दो मत पाए जाते हैं. हिंदुओं के अनुसार भोजशाला यानी सरस्वती का मंदिर है, जबकि मुस्लिम इसे पुरानी इबादतगाह बताते हैं. धार की ऐतिहासिक भोजशाला को राजा भोज द्वारा स्थापित सरस्वती सदन कहते हैं. यहां कभी 1000 साल पहले शिक्षा का एक बड़ा संस्थान हुआ करता था. यहां पर राजवंशों के शासन के दौरान मुस्लिम समाज को नमाज के लिए अनुमति दी गई, क्योंकि यह इमारत अनुपयोगी पड़ी थी. यहां पास में सूफी संत कमाल मौलाना की दरगाह है. ऐसे में लंबे समय से मुस्लिम समाज यहां नमाज अदा करते रहे हैं. परिणाम स्वरूप पर दावा करते हैं कि यह भोजशाला नहीं बल्कि कमाल मौलाना की दरगाह है.
वहीं हिंदू समाज यह दावा करता है कि यह दरगाह नहीं बल्कि राजा भोज के काल में स्थापित सरस्वती सदन भोजशाला है. इतिहास में भी इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि यहां से अंग्रेज मां सरस्वती की प्रतिमा निकाल कर ले गए जो कि वर्तमान में लंदन के संग्रहालय में सुरक्षित रखी है. विवाद की शुरुआत 1902 से बताई जाती है, जब धार के शिक्षा अधीक्षक काशीराम लेले ने मस्जिद के फर्श पर संस्कृत के श्लोक खुदे देखे थे और इसे भोजशाला बताया था. विवाद का दूसरा पड़ाव 1935 में आया, जब धार महाराज ने इमारत के बाहर तख्ती टंगवाई जिस पर भोजशाला और मस्जिद कमाल मौलाना लिखा था. आजादी के बाद ये मुद्दा सियासी गलियारों से भी गुजरा. मंदिर में जाने को लेकर हिंदुओं ने आंदोलन किया. साथ ही जब भी बसंत पंचमी शुक्रवार को पड़ता है उस दिन विवाद और बढ़ जाता है. वहीं शुक्रवार को मुस्लिम समाज में जुम्मे की नमाज अदा की जाती है उस दिन वह मस्जिद में जुम्मे का नमाज पढ़ते हैं.
बसंत पंचमी पर भगवा रंग में रंगा भोजशाला! खाकी के साये में मां सरस्वती की हो रही पूजा-अर्चना
इस बार बसंत पंचमी शनिवार को पड़ रही है. जिसकी वजह से तनाव काफी कम है और शांति बरकरार है. बसंत पंचमी शुक्रवार को पड़ने पर तनाव की स्थिति बन जाती है, क्योंकि शुक्रवार को मुस्लिम समाज भी भोजशाला में नमाज पढ़ने जाते हैं. इस दिन प्रशासन को अतिरिक्त ताकत के साथ डटना पड़ता है.