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लाखों के मटके बने शोपीस, परिवार के सामने रोजी रोटी का संकट

बढ़ती गर्मी के बाद अब लॉकडाउन की चपेट से मटका बनाने वाले कुम्हार भी आ गए हैं. मई के महीने में आमतौर पर मटकों की बिक्री खूब होती है, लेकिन कोरोना वायरस के चलते किए गए लॉकडाउन से इस साल कुम्हारों का धंधा पूरी तरह से चौपट नजर आ रहा है.

Pot not sold due to lockdown
लाखों के मटके बने शोपीस

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Published : May 12, 2020, 9:36 PM IST

देवास।लॉकडाउन के चलते हर तरफ मंदी का दौर शुरू हो चुका है, बढ़ती गर्मी के बाद अब इसकी चपेट से कुम्हार और मटका व्यापारी भी आ गए हैं. मई का महीना शुरु हो चुका है और उनके धंधे में जिस तरह से गर्मी के दिनों में उछाल रहता था, उस तरह का उछाल इस गर्मी में नजर नहीं आ रहा है. जिस कारण मटका व्यापारी काफी दयनीय स्थित में गुजर बसर कर रहे हैं.

परिवार के सामने रोजी रोटी का संकट

खातेगांव कन्नौद के पास किलोदा गांव में कुम्हार समाज के करीब 25-30 परिवार रहते हैं. जिनका पारंपरिक व्यवसाय मिट्टी के बर्तन बनाना है. खासकर गर्मी के मौसम के लिए मटके, सुराही आदि बनाकर सालों से गुजर बसर करते आए हैं, लेकिन इस बार इन्होंने मटके तो बना लिए पर बाजार नहीं ले जा पा रहे, जिस कारण इन परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट आ गया है.

कुम्हार गणेश प्रजापति ने बताया कि ये उनका पांरपरिक पेशा है. इनका पूरा परिवार मिट्टी के विभिन्न प्रकार के बर्तन बनाकर अपनी आजीविका चलाता है. ये लोग 8 महीने मटके बनाकर फरवरी से उन्हें गांव-गांव, शहर-शहर बेचने जाते थे, लेकिन इस बार उनके द्वारा बनाये गए मटके, सुराही के साथ ही गमले एवं घर की सजावट के सामान लोगों तक नही पहुंचे हैं.

इंदौर बैतूल नेशनल हाइवे पर किलोदा में करीब 25-30 कुम्हार समाज के लोग 8 महीने तक मटके बनाते हैं और तीन महीने इन्हे बेचकर साल भर की रोजी रोटी कमाते हैं, लेकिन सीजन शुरू होते ही लॉकडाउन के कारण इनका व्यापार बुरी तरह प्रभावित हो गया, लाखों रूपये के मटके, सुराही, सकोरे घरो पर ही पडे़ धूल खा रहे हैं. इस कारण इन छोटे व्यवसायियों के सामने भूखे रहने तक की नौबत आ गई है.

बता दें कि कन्नौद के किलोदा गांव के बने मटके क्षेत्र में बहुत विख्यात हैं. यहां से इंदौर, देवास, हरदा, सिहोर सहित अन्य जिलों में नाम से मटके बिकते हैं. लेकिन अब सामान की बिक्री नहीं होने से ये मटके आने वाले गर्मी के मौसम तक इनके घर के शोपीस बने हुए हैं. ऐसी स्थिति में इन परिवारों के सामने परिवार के लालन-पालन का संकट भी खड़ा हो गया है.

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