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अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़ा नसबंदी शिविर, मरीज के परिजनों को ही खींचना पड़ा स्ट्रेचर

दमोह जिले की हटा सिविल अस्पताल में आयोजित नसबंदी शिविर में अव्यवस्थाओं बोल-बोला रहा. कई मरीजों को जमीन पर लेटना पड़ा. परिजन खुद ही मरीजों स्ट्रेचर खींचते नजर आए. हद तो तब हो गई जब कोरोना जांच केंद्र में ही और नसबंदी के मरीजों भी लिटा दिया गया

sterilization camp
नसबंदी शिविर

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Published : Dec 8, 2020, 4:02 AM IST

दमोह।जिले की हटा सिविल अस्पताल में निःशुल्क परिवार नियोजन शिविर में इस बार भी व्यवस्थाओं की हालत खराब रही. शिविर में मरीजों के परिजनों को ही स्ट्रेचर धकेल कर वार्ड में ले जाना पड़ा. मरीजों को लेटने के लिए बेड तक नसीब नहीं हुए. ठंड के मौसम में मरीजो को फर्श पर ही लिटा दिया गया. हद तो तब हो गई जब कोरोना जांच केंद्र में ही और नसबंदी के मरीजों भी लिटा दिया गया.

हटा सिविल अस्पताल

लोगों ने जताई नाराजगी

इससे अब सक्रमण का खतरा भी मरीजों और उनके साथ आए परिजनों पर मंडराने लगा है. स्वास्थ्य विभाग का लापरवाह चेहरा सामने आने के बाद लोग हटा सिविल अस्पताल में मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं को कोस रहे हैं. परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन के इस रवैए पर नाराजगी जाहिर की है.

जिम्मेदार बरत रहे लापरवाही

नसबंदी कराने वाली महिलाओं को अस्पताल में बेड और नाश्ता के अलावा उन्हें परिवहन की व्यवस्था मुफ्त दी जाती है, ताकि वे अपने घर तक आसानी से पहुंच सकें. लेकिन, अस्पताल में अव्यवस्थाओं और संवेदनहीनता का स्तर ये था कि सर्जरी वाली महिलाओं के साथ आने वाले परिजनों को ही स्ट्रेचर से उन्हें यहा से वहां ले जाना पड़ा.

बीएमओ पीडी करगैया का गैर जिम्मेदाराना बयान

हटा सिविल अस्पताल से जब इस संबंध में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि सभी मरीजों को बेड दिए गए हैं. जिन्हें नहीं मिले उन्हें फर्श के ऊपर गद्दे पर लिटाया गया है. कोरोना संक्रमण की जांच किए जाने वाले रूम में मरीजों को लिटाए जाने पर बीएमओ पीडी करगैया ने कहा कि इससे कुछ नहीं होता. सभी मरीजों की रिपोर्ट निगेटिव आई है.

सरकारी कार्यक्रमों पर पड़ेगा बुरा असर

बता दें कि शासन की ओर से मुफ्त नसबंदी शिविर की व्यवस्था इसलिए की जाती है ताकि लोगों को नसबंदी के लिए जागरूक किया जा सके.इसकी सुविधा नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्रों पर उपलब्ध हो सके. लेकिन, जिम्मेदारों की लापरवाही इन शिविरों के औचित्य पर ही सवाल खड़ा कर देती है. शिविर में नसबंदी कराने आईं महिलाओं को जिस तरह की असुविधाओं का सामना करना पड़ा, उससे नसबंदी के प्रति जागरूकता बढ़ना तो दूर बल्कि लोग नसबंदी कराने से ही कतराने लगेंगे.

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