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निजी स्कूल नहीं कर रहे RTE कानून का पालन, ऑनलाइन पढ़ाई से गरीब बच्चों को रख रहे दूर

सरकार ने निर्धन बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके इसलिए निजी स्कूलों के लिए शिक्षा का अधिकार कानून लागू किया है, लेकिन अब निजी स्कूल आरटीई के दायरे में आने वाले बच्चों को कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई से दूर कर रहे हैं.

Private schools are not following RTE law
शिक्षा का अधिकार कानून

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Published : Aug 12, 2020, 1:27 PM IST

छिंदवाड़ा। कोरोना ने सब कुछ अस्त व्यस्त कर दिया है. जहां उद्योगधंधा चौपट है, किसान और मजदूर परेशान हैं. वहीं अब नई मुसीबत निजी स्कूलों में आरटीई यानी शिक्षा का अधिकार कानून के अंतर्गत पढ़ने वाले बच्चों पर आ गई है. सरकार ने निर्धन बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके इसलिए निजी स्कूलों के लिए शिक्षा का अधिकार कानून लागू किया है, लेकिन अब निजी स्कूल कोरोना संकट के इस दौर में आरटीई के दायरे में आने वाले बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई से दूर कर रहे हैं.

निजी स्कूल नहीं कर रहे RTE कानून का पालन

ऑनलाइन ग्रुपों से निर्धन बच्चों को हटाया
सरकार ने निर्धन बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके, इसलिए निजी स्कूल को आरटीई के दायरे में लाकर एक निश्चित संख्या में बच्चों को पढ़ाने के आदेश जारी किए थे. जिसका पूरा खर्च सरकार उठाती है. लेकिन ऑनलाइन पढ़ाई के दौर में अब निजी स्कूल इन बच्चों को शिक्षा से दूर रख रहे हैं, जिसके चलते बच्चों के भविष्य पर खतरा मंडरा रहा है. छिंदवाड़ा के अधिकतर निजी स्कूलों में ऑनलाइन पद्धति से पढ़ाई कराई जा रही है. लेकिन यहां फीस जमा करने वाले अभिभावकों के बच्चों को ग्रुप में एड किया गया है.

शिकायत पर भी नहीं निकला समाधान
कोरोनाकाल में घटी कमाई के कारण जहां सामान्य लोगों को परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है, वहीं आरटीई के दायरे में अपने बच्चों को पढ़ाने वाले परिवार का अंदाजा लगाया जा सकता है. निर्धन बच्चों के पेरेंट्स अपनी समस्या को लेकर कई बार कलेक्टर, जिला शिक्षा अधिकारी से मिलकर अपनी शिकायत कर चुके हैं लेकिन अभी तक उनका कोई समाधान नहीं निकला है.

डीईओ ने जांच कराकर कार्रवाई का भरोसा दिया
इस मामले में जब ईटीवी भारत ने जिला शिक्षा अधिकारी से बात की तो उन्होंने बताया कि कुछ पेरेंट्स ने उन्हें शिकायत दी है कि उनके बच्चों को आरटीई के दायरे में होने के बाद भी ऑनलाइन शिक्षा से निजी स्कूल वंचित कर रहे हैं. वो इस मामले में जांच करा कर कार्रवाई करेंगे.

स्कूल देते हैं महंगे सॉफ्टवेयर की धौंस
निर्धन बच्चों की पढ़ाई का हाल जानने जब ईटीवी भारत बच्चों के पेरेंट्स से मिला तो उन्होंने बताया कि स्कूल प्रबंधन से जब अपने बच्चों की पढ़ाई के बारे में बात करते हैं तो स्कूल प्रबंधन मोटी रकम देकर सॉफ्टवेयर खरीदा जाने की बात कह कर उनसे फीस की मांग करता है. पेरेंट्स ने बताया कि स्कूल प्रबंधन का कहना है कि जब तक फीस जमा नहीं होती तब तक उस बच्चे की जानकारी सॉफ्टवेयर अपडेट नहीं करता.

कोरोना काल में घटी कमाई के कारण जहां सामान्य लोगों को परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है, वहीं आरटीई के दायरे में अपने बच्चों को पढ़ाने वाले परिवार का अंदाजा लगाया जा सकता है. ऐसे में छिंदवाड़ा के स्कूलों का ये लापरवाही पूर्ण रवैया फीस न दे पाने वाले बच्चों के भविष्य के लिए घातक साबित हो सकता है.

क्या है शिक्षा का अधिकार कानून
बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 1 अप्रैल, 2010 को पूर्ण रूप से लागू हुआ है. इस अधिनियम के अंतर्गत 6 से लेकर 14 वर्ष के सभी बच्चों के लिए शिक्षा को पूर्णतः मुफ्त एवं अनिवार्य दिया गया था. बाद में संसोधन कर इसमें निजी स्कूलों को भी शामिल किया गया था, जिसके तहत कोई भी निजी स्कूल सरकार द्वारा बताए गए निश्चित संख्या के बच्चों का निःशुल्क शिक्षा देगा, जिसका व्यय सरकारे करेंगी. लेकिन अब कोरोना काल में इसी क्लाज के उल्लंघन के आरोप लग रहे है.

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