छिंदवाड़ा।पांढुर्णा तहसील में एक ऐसी प्राचीन बावड़ी हैं, जिसका निर्माण मुगल राजा ने अपनी सेना के लिए कराया था. यहां बरगद के पेड़ों की छांव में राजा की सेना रुकती थी लेकिन अब यह बावड़ी जर्जर हो गई हैं, जिसकी सुध कोई नहीं ले रहा हैं. बरगदों के पेड़ से घिरे इस गांव में एक ऐसी बावड़ी है, जो कभी सेना की प्यास बुझाती थी लेकिन अब खुद बदहाली के आंसू बहा रही है.
मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा के पास बसे बड़चिचोली गांव में मुगल राजाओं ने एक बावड़ी बनवाई थी, जहां मुगल बादशाह और उनकी सेना रात भर रुकती थी. लेकिन बदलते समय के बाद अब यह प्राचीन बावड़ी अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही हैं. जिसकी सुध न तो छिंदवाड़ा प्रशासन ले रहा है और न ही पांढुर्णा के अधिकारी, जिसके चलते ये बावड़ी जर्जर होकर पड़ी हैं.
सेना के लिए बनवाई गई थी बावड़ी
ग्रामीण नूर मोहम्मद बताते हैं कि नागपुर के राजा ओर उनकी सेना इस बरगद के पेड़ों के नीचे रात भर आराम करती थी लेकिन यहां पानी की व्यवस्था नहीं रहने से राजा ने अपनी सेना की प्यास बुझाने के लिए बावड़ी बनवाई थी. तब से जब-जब राजा की सेना आती थी, तब-तब सेना और उनके घोड़े की इस बावड़ी से प्यास बुझती थी, इसलिए इस बावड़ी की दीवाल पर आज भी राजा की आकृति और पदचिन्ह दिखाई देते हैं.
एक बरगद के पेड़ से फैला 5 एकड़ में जाल
बड़चिचोली के लोग बताते हैं कि मुगल राजा और उसकी सेना इस जगह पर रात भर रुकते थे. उस खुले मैदान पर विशालकाय एक बरगद का पेड़ था, जिसके नीचे ही पूरी सेना रुकती थी, लेकिन अब वर्तमान में यह बड के पेड़ों का जाल 5 एकड़ तक फैल चुका हैं.