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विकास के लिए तरसती मुगलकालीन 'बावड़ी'!

मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा के पास बसे बड़चिचोली गांव में एक ऐसी बावड़ी है, जिसे मुगल राजाओं ने अपनी सेना के लिए बनवाया था. लेकिन अब वही बावड़ी अपनी बदहाली के आंसू बहा रही है.

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मुगलकालीन 'बावड़ी'

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Published : Feb 13, 2021, 9:23 PM IST

छिंदवाड़ा।पांढुर्णा तहसील में एक ऐसी प्राचीन बावड़ी हैं, जिसका निर्माण मुगल राजा ने अपनी सेना के लिए कराया था. यहां बरगद के पेड़ों की छांव में राजा की सेना रुकती थी लेकिन अब यह बावड़ी जर्जर हो गई हैं, जिसकी सुध कोई नहीं ले रहा हैं. बरगदों के पेड़ से घिरे इस गांव में एक ऐसी बावड़ी है, जो कभी सेना की प्यास बुझाती थी लेकिन अब खुद बदहाली के आंसू बहा रही है.

बदहाली के आंसू बहा रही मुगलकालीन 'बावड़ी'

मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा के पास बसे बड़चिचोली गांव में मुगल राजाओं ने एक बावड़ी बनवाई थी, जहां मुगल बादशाह और उनकी सेना रात भर रुकती थी. लेकिन बदलते समय के बाद अब यह प्राचीन बावड़ी अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही हैं. जिसकी सुध न तो छिंदवाड़ा प्रशासन ले रहा है और न ही पांढुर्णा के अधिकारी, जिसके चलते ये बावड़ी जर्जर होकर पड़ी हैं.

सेना के लिए बनवाई गई थी बावड़ी

ग्रामीण नूर मोहम्मद बताते हैं कि नागपुर के राजा ओर उनकी सेना इस बरगद के पेड़ों के नीचे रात भर आराम करती थी लेकिन यहां पानी की व्यवस्था नहीं रहने से राजा ने अपनी सेना की प्यास बुझाने के लिए बावड़ी बनवाई थी. तब से जब-जब राजा की सेना आती थी, तब-तब सेना और उनके घोड़े की इस बावड़ी से प्यास बुझती थी, इसलिए इस बावड़ी की दीवाल पर आज भी राजा की आकृति और पदचिन्ह दिखाई देते हैं.

बावड़ी

एक बरगद के पेड़ से फैला 5 एकड़ में जाल

बड़चिचोली के लोग बताते हैं कि मुगल राजा और उसकी सेना इस जगह पर रात भर रुकते थे. उस खुले मैदान पर विशालकाय एक बरगद का पेड़ था, जिसके नीचे ही पूरी सेना रुकती थी, लेकिन अब वर्तमान में यह बड के पेड़ों का जाल 5 एकड़ तक फैल चुका हैं.

आज भी मौजूद हैं आकृति और पदचिन्ह

बड के पेड़ से हुआ बड़चिचोली गांव का नाम

एक बड (बरगद) के वृक्ष से फैली वाटिका के नाम से जाना जाता था, इसलिए इस गांव का नाम बड़चिचोली रख दिया गया. जो कि छिंदवाड़ा जिले में कौमी एकता के नाम से मशहूर हैं.

फरीद वाटिका

फरीद वाटिका के नाम से जाना जाता हैं बड़चिचोली गांव

बड़चिचोली गांव में एक ऐसी दरगाह हैं जिसे फरीद वाटिका कहा जाता हैं. इस दरगाह की खास बात यह हैं कि इस दरगाह में हिंदू-मुस्लिम एक साथ फरीद बाबा की इबादत करते हैं, इसलिए इस दरगाह को कौमी एकता का दर्जा दिया गया हैं.

यहां धर्म की नहीं कोई दीवार! हिंदू-मुस्लिम एक साथ करते हैं 'इबादत' और 'पूजा'

ग्रामीण बताते है कि कई साल पहले इस फरीद वाटिका में एक छोटी से दरगाह हुआ करती थी जहां अंधेरा छाया रहता था. इस दरगाह पर जाने से हर कोई डरता था लेकिन इस दरगाह की मरम्मत करने के लिए हिंदू-मुस्लिम दानदाता आगे आए, जिनके जनसहयोग से वर्तमान में भव्य फरीद बाबा की दरगाह बनाई गई हैं.

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