छिन्दवाड़ा। रियल लाइफ की 'शेरनी' भारती एक ऐसी अफसर हैं जो 28 सालों से वन विभाग में निडरता से नौकरी कर रही हैं. कई चुनौतियां आईं, कई मुश्किलों का सामना किया, लेकिन सब कुछ उन्होने अपने अंदाज में, सरलता से और समन्वय से हल किया. उनका मानना है कि परिवार का सहयोग हो और जज्बा हो तो किसी भी प्रकार की नौैकरी को आसानी से किया जा सकता है.बता दें पेंच टाईगर रेंज में तैनात भारती ठाकरे एसडीओ के रूप में तैनात हैं और उन लड़कियों के लिए प्रेरणा हैं जो जंगल की या वन विभाग की नौकरी करने से हिचकिचाती हैं. भारती लड़कियों को हौसला देती हैं कि वे हर क्षेत्र की नौकरी न सिर्फ कर सकती हैं, बल्कि जी सकती हैं.
जबाव- रील लाइफ में काम करना और रियल लाइफ में काम करना एक दम अलग है, टाइगर रिजर्व में सबसे महत्वपूर्ण काम पैदल पेट्रोलिंग का होता है और महिलाओं के लिए और कठिन हो जाता है, कई बार होता है कि समय निश्चित नहीं होता, आपको रात में भी पेट्रोलिंग करनी होती है, दिन में भी करनी होती है, इसलिए डर होता है कि कभी भी वन माफिया आप पर हमला कर सकते हैं, हमारे साथ भी ऐसा एक बार हो चुका है, जब तोतलाडोह में रात की पेट्रोलिंग के दौरान कुछ मछुआरों ने हमें घेर लिया था, उनके पास घातक हथियार के साथ ही केमिकल भी थे, जो हमें और हमारी टीम को नुकसान पहुंचा सकते थे, हमने सूझ-बूझ से काम लिया और अपनी टीम को समझाने के साथ ही माफियाओं से भी समन्वय से चर्चा की, लेकिन बाद में उन्हें नियम के हिसाब से मामला दर्ज कर सजा भी दी गई.
सवाल- आपकी नौकरी में समय निश्चित नहीं होता, रिस्क भी काफी होती है, कोई ऐसा समय जब आपको डर के साथ लगा हो कि नौकरी करना गलत फैसला था.
जबाव- हमेशा से ही मुझे जंगली जानवरों पर विश्वास रहा है, कई बार पैदल भी ऐसे मौके आए हमारे सामने, जब भालू और कई जानवर आए, टाइगर भी आया लेकिन हम उस समय गाड़ियों में थे,वैसे डर मुझे कभी नहीं लगा क्योंकि मैं शुरू से ऐसे माहौल में पली-बढ़ी थी.
सवाल- मध्य प्रदेश के विभाजन के बाद आप इकलौती महिला फॉरेस्ट रेंजर थीं, करीब 10 साल तक मध्यप्रदेश में इकलौती महिला रेंजर के रूप में आपने काम किया, कैसा अनुभव था.
जबाव- अंग्रेजों के शासन काल में मेरे दादाजी वन विभाग में नौकरी करते थे, हालांकि उनकी सेवा फोरेस्ट गार्ड तक ही सीमित रही, उससे आगे उनका प्रमोशन नहीं हुआ, लेकिन जैसे ही मेरा फोरेस्ट रेंजर के पद पर प्रमोशन हुआ, तो उन्हें बेहद खुशी हुई कि उनकी पोती रेंजर के पद पर सिलेक्ट हुई है, इसके साथ ही मेरे परिवार ने हमेशा ही मुझे सहयोग करते हुए काम करने की प्रेरणा दी है. मध्य प्रदेश का जब विभाजन हुआ उस दौरान 2 महीला रेंजर थीं, एक छत्तीसगढ़ में चली गई और मैं मध्यप्रदेश में ही रही, करीब 10 साल तक प्रदेश में इकलौती फॉरेस्ट रेंजर के रूप में मैंने काम किया.