मध्य प्रदेश

madhya pradesh

ETV Bharat / state

वीरता और पराक्रम की अनूठी मिशाल बुंदेलखंड के छत्रसाल, नाम सुनते ही खोफ खाते थे मुगल सरदार

बुंदेलखंड की धरती वीरता, पराक्रम और अपनी आन-बान-शान के लिये प्रसिद्ध रही है. वीरता की ऐसी ही एक मिसाल थे बुंदलेखंड की धरती में जन्मे वीर योद्धा महराजा छत्रसाल, जिन्होंने अपनी कुशलता, रणनीतिक क्षमता और पराक्रम के दम पर बुंदेलखंड को वैभवशाली राज्य के रुप में स्थापित किया था

महराजा छत्रसाल

By

Published : Mar 21, 2019, 1:40 AM IST

छतरपुर।बुंदेलखंड की धरती वीरता, पराक्रम और अपनी आन-बान-शान के लिये प्रसिद्ध रही है. क्योंकि यह वह धरती है जो न तो कभी किसी के सामने झुकी है और न ही किसी से हारी है. जिसके लिये एक प्रसिद्ध कहावत की कही जाती है.

बुन्देलों की सुनो कहानी, बुन्देलों की बानी में.

पानीदार यहां को पानी, आग यहां के पानी में.

(बुंदेली कहावत)

क्योंकि इस धरती पर ऐसे-ऐसे वीर योद्धाओं ने जन्म लिया है, जिनकी वीरता की मिशाले आज भी पूरे भारत में दी जाती है. वीरता की ऐसी ही एक मिसाल थे बुंदलेखंड की धरती में जन्मे वीर योद्धा महराजा छत्रसाल, जिन्होंने अपनी कुशलता, रणनीतिक क्षमता और पराक्रम के दम पर बुंदेलखंड को वैभवशाली राज्य के रुप में स्थापित किया था. उन्हें बुंदेलखंड का शिवाजी भी कहा जाता था क्योंकि उस वक्त हिंदुस्तान में शिवाजी के समकक्ष केवल छत्रसाल को ही माना जाता था.

इत यमुना, उत नर्मदा, इत चंबल, उत टोंस.

छत्रसाल सों लरन की, रही न काहू हौंस.

यह पंक्तियां छत्रसाल की युद्ध कला और वीरता पर सटीक बैठती है जो आज भी बुंदेलखंड में बच्चे-बच्चे की जुबान से सुनी जा सकती है. क्योंकि छत्रसाल ने महज पांच घुड़सवारों और 25 सैनिकों के दम पर मुगल शासक औरंगजेब से अपनी जागीर छीन ली थी. जो उनकी वीरता की सबसे बड़ी मिशाल है.

छतरपुर जिले के महू सहानियां में धुबेला के नाम से मशहूर यह इमारत महराजा छत्रसाल का समाधि स्थल है. जिसका निर्माण खुद बाजीराव पेशवा ने करवाया था. क्योंकि पेशवा छत्रसाल को अपने पिता की तरह मानते थे. कहा जाता है कि उन्होंने अपना अखिरी वक्त यही गुजारा था. जहां पहुंचकर आज भी हर इंसान छत्रसाल के अद्भुत शौर्य और पंराक्रम को महूसस कर सकता है. कहते है कि जब छत्रसाल के पिता चम्पतराय की मौत हुई थी उस वक्त वे सिर्फ 12 साल के ही थे. लेकिन, इतनी छोटी सी उम्र में भी उनकी तलवार में बिजली सी चमक, और इरादों में चट्टानों सी मजबूती थी. जिसके दम पर वे भी किसी से भी भिड़ जाते थे.

वीडियो

एक युद्ध में शिवाजी ने जब छत्रसाल की इसी वीरता का पराक्रम देखा तो वे उनके मुरीद हो गये. शिवाजी ने उन्हें बुंदेलखंड में स्वतंत्र राज्य की स्थापना का आदेश दिया. जिसके बाद बुंदलेखंड लौटते ही छत्रसाल ने एक बड़ी सैना तैयार की और पूरे बुंदेलखंड से मुगलों के शासन को उखाड़ फैका. उस वक्त बुंदेलखंड में मुगल शासन के जितने भी सरदार थे वे सब के सब छत्रसाल से खोफ खाते थे. छत्रसाल ने 1678 में पन्ना को अपनी राजधानी बनाया जहां पूरे जश्न के साथ उनका राज्याभिषेक किया गया. छत्रसाल अपने अंतिम समय तक बुंदेलखंड की सीमाओं का विस्तार करते रहे और अपनी वीरता में लगातार नये आयाम लिखते रहे.

बुंदेलखंड में छत्रसाल के लिये कहा जाता है कि जहां-जहां उनके घोड़े की टापों के पदचिन्ह पहुंचे वह धरा धनधान्य, रत्न संपदा से भर गयी थी. बुंदेलखंड के इस वीर योद्धा की धरती आज भी उन्हें नमन करती है. क्योंकि इस योद्धा के नाम से ही बुंदेलखंड को पहचाना जाता है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details