बुरहानपुर। बुरहानपुर शहर की दो महिलाएं अपनी लगन और मेहनत के लिए जानी जाती हैं क्योंकि एक ने उम्र की बाधाओं को पीछे छोड़ते हुए वो मुकाम हासिल किया जो आज युवाओं के लिए भी आसान नहीं होता तो दूसरी ने समाज के बंधनों की परवाह किए बिना ही अपनी मंजिल हासिल की.
हम बात कर रहे हैं बुराहनपुर शहर की फौजिया फरहाना और एसडीएम प्रगति वर्मा की. फौजिया फरहाना ने जहां 55 वर्ष की उम्र में हिंदी साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की देहाती जिंदगी पर उर्दू भाषा में पीएचडी की है तो वहीं प्रगति वर्मा समाज के विरोध को दरकिनार करते हुए पढ़ाई करके एसडीएम के पद पर पहुंची हैं, जिनसे जिले की कई महिलाएं प्रेरित हो रही है.
उम्र के बंधनों को पीछे छोड़ पूरी की पीएचडी की पढ़ाई
कहते हैं पढ़ाई की कोई उम्र नहीं होती, यह मां की गोद से शुरू होती है और धरती की गोद में जाकर समाप्त होती है. पढ़ाई सतत चलने वाली प्रक्रिया है. यह सार्थक कर दिखाया बुरहानपुर के खैराती बाजार में रहने वाली फौजिया फरहाना ने, जिन्होंने 55 वर्ष की उम्र में हिंदी साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की देहाती जिंदगी पर उर्दू भाषा में पीएचडी की है. यही नहीं फौजिया फरहाना समाज सेवा के क्षेत्र में भी अपना बहुमूल्य योगदान दे रही हैं. मौजूदा वक्त में फरहाना जन जागृति संस्था में सदस्य, लायंस क्लब में सचिव, पुलिस विभाग में महिला वालेंटियर तो वहीं इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट्स एंड कल्चर हेरिटेज संस्था में सदस्य के रूप में अपनी सेवाएं दे रही हैं.
पति की मदद से हासिल किया अपना मुकाम
कहते हैं एक सफल नारी के पीछे एक पुरुष का हाथ होता है, कुछ ऐसी ही कहानी है प्रगति वर्मा की जिन्होंने अपने पति आशीष वर्मा से प्रेरणा लेकर आंगनवाड़ी सुपरवाइजर से लेकर डिप्टी कलेक्टर और फिर एसडीएम पद तक का सफर तय किया है. वो भी समाज के विरोध को दरकिनार करते हुए. दरअसल कुर्मी समाज से आने वाली प्रगति के घर में बेटियों को नौकरी नहीं करने दिया जाता था. लेकिन, प्रगति ने पढ़ाई के बाद डिप्टी कलेक्टर बनने का प्रण लिया था. लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार उनका सपना पूरा हुआ और बतौर डिप्टी कलेक्टर के रूप में पहली पदस्थापना बुरहानपुर जिले में हुई, जहां उनकी मेहनत देखकर जिला प्रशासन ने उन्हें एसडीएम के पद पर पदस्थ कर दिया.