बुरहानपुर। हमारे देश में एक से बढ़कर एक किले हैं. जो खुद में एक से बढ़कर एक रहस्य और कहानियां समेटे हुए हैं. ऐसा ही बुरहानपुर का असीरगढ़ का किला है, जो और हमें इतिहास से रु-ब-रु कराता है.
यहां अश्वत्थामा आज भी करते हैं भगवान शिव की आराधना असीरगढ़ किले को अहीर राजवंश के राजा आसा अहीर ने बनाया था. यह किला देखने में जितना अद्भुत है उतना ही पौराणिक भी है. किले में असीरेश्वर शिव मंदिर स्थित है, जहां अश्वत्थामा आज भी शिवलिंग की अराधना करने आता है.
इतिहासकारों के मुताबिक अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में पांडवों की हत्या करने गया था, लेकिन पांडवों के शिविर में नहीं मिलने पर उसने उनके बेटों को मौत के घाट उतार दिया था. इतिहास कार के मुताबिक अश्वत्थामा द्वारा की गई हत्या से पांडव बेहद नाराज थे. और इस दरमियान अर्जुन और अश्वत्थामा ने एक दूसरे पर ब्रह्मास्त्र चलाए थे. हालांकि वेदव्यास के कहने पर अर्जुन अपना ब्रम्हास्त्र वापस ले लिए थे. लेकिन अश्वत्थामा अस्त्र वापस नहीं ले सका. बाद में अश्वत्थामा के अस्त्र का निशाना अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा हुईं. हालांकि भगवान श्रीकृष्ण के रक्षा चक्र ने अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ की रक्षा की थी.
स्थानीय लोगों और इतिहासकारों का दावा है कि अश्वत्थामा अपने पिता द्रोणाचार्य की मौत का बदला लेने के लिए पांडवों की हत्या करने गया था. लेकिन उसकी एक चूक भारी पड़ गई. भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें युगों-युगों तक भटकने का श्राप दे दिया, अश्वत्थामा तकरबीन पांच हजार सालों से भटक रहा है.