भोपाल। मध्यप्रदेश में चले पॉलिटिकल ड्रामे के बाद आखिरकार बीजेपी की सरकार भी बनी और सिंधिया समर्थकों को मंत्री पद भी मिल ही गया. सिंधिया की अपनी ही पार्टी से नाराजगी ने कांग्रेस की सरकार गिराई, और मध्यप्रदेश में चौथी बार बीजेपी सत्ता पर काबिज हुई. लेकिन इस सियासी सफर में एक नजर डाले इतिहास में कैद एक वो कहानी भी याद आती है, जब 1967 में ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस के 36 विधायकों को जन संघ में शामिल किया था और प्रदेश में डीपी मिश्रा की सरकार गिराई थी. लेकिन राजमाता सिंधिया की सरकार ज्यादा दिन नहीं चल सकी और दोबारा फिर कांग्रेस की सरकार बनी.
राजमाता विजयाराजे सिंधिया का सफर
दरअसल कांग्रेस पार्टी में तवज्जा नहीं मिलने से खफा होकर ग्वालियर राजघराने से ताल्लुक रखने वाली राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने 1967 में पार्टी छोड़ दी थीं, जिससे मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार गिर गई थी और अब 53 साल बाद उनके पौत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इसी राह पर चल दिए हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयाराजे देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की कभी बहुत करीबी मानी जाती थीं.
1957 से शुरू हुआ था राजनीतिक करियर
विजयराजे ने अपना राजनीतिक जीवन साल 1957 में कांग्रेस से शुरू किया था और 10 साल कांग्रेस में रहने के बाद 1967 में इस पार्टी को अलविदा कह दिया था. साल 1967 में लोकसभा और मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए एक साथ चुनाव हुए थे. राजमाता इस सिलसिले में तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्रा से मिलने गई थी. जहां मिश्रा ने उन्हें 2 घंटे प्रतीक्षा कराने के बाद उनसे मुलाकात की. जिसके चलचे नाराज होकर राजमाता ने पार्टी छोड़ दिया था.