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राजनीति के अजेय योद्धा से बिजनेस टाइकून तक, सियासत के 'सिकंदर' की ऐसी है Political Journey - Political Journey of Business Tycoon

सियासत का वो सिकंदर, जो कभी हारा नहीं. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ 1979 में पहली बार छिंदवाड़ा के सांसद बने, उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर (Political Journey of Kamalnath) नहीं देखा. यहां जानें उनका सफर सियासत से लेकर बिजनेस टायकून बनने तक. आज कमलनाथ का 75वां जन्मदिन (Happy Birthday Kamal Nath) है, दिग्गज उन्हें बधाई दे रहे हैं.

Former Chief Minister Kamal Nath celebrated 75th birthday
कमलनाथ का सियासी सफर

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Published : Nov 18, 2021, 10:34 AM IST

Updated : Dec 2, 2021, 2:14 PM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश और देश की राजनीति में अहम किरदारों की चर्चा की जाए तो चुनिंदा नामों में पूर्व सीएम व पीसीसी चीफ कमलनाथ का नाम अहम है. उन्होंने मध्यप्रदेश में कांग्रेस के वनवास को खत्म कर एक बार फिर सत्ता में स्थापित किया था. लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों की बगावत के बाद उनकी सरकार गिर गई और अब कांग्रेस एक बार फिर विपक्ष में हैं. तो सियासी लड़ाई के बीच जानते हैं कि उत्तरप्रदेश के कानपुर की गलियों में खेलने वाला लड़का आज कैसे इस मुकाम तक पहुंचा.

उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुआ जन्म

कमलनाथ का कानपुर से गहरा नाता है. उनका जन्म 18 नवम्बर 1946 को यहां के खलासी लाइन में हुआ था. कमलनाथ की प्रारंभिक शिक्षा भी कानपुर में ही हुई थी. उनके पिता महेंद्र नाथ और लीला नाथ उन्हें पढ़ा लिखाकर वकील बनाना चाहते थे. कमलनाथ का बचपन कानपुर की गलियों में (Political Journey of Kamalnath) बीता है. बाद में उनके माता-पिता कानपुर छोड़कर कोलकत्ता चले गए.

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करियर

कमलनाथ की आगे की स्कूली शिक्षा देहरादून स्कूल से हुई. इसके बाद सेंट जेवियर कॉलेज कोलकाता से उन्होंने कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया. 2006 में रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर ने उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया. कमलनाथ 1979 में पहली बार छिंदवाड़ा से सांसद चुने गए. इसके बाद 1984, 1990, 1991, 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में वे लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए.

केंद्र सरकार में निभाईं अहम जिम्मेदारियां

कमलनाथ 1991 से 1994 तक केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्री, 1995 से 1996 केंद्रीय कपड़ा मंत्री, 2004 से 2008 तक केंद्रीय वाणिज्य व उद्योग मंत्री, 2009 से 2011 तक केंद्रीय सड़क व परिवहन मंत्री, 2012 से 2014 तक शहरी विकास व संसदीय कार्य मंत्री रहे. उन्होंने भारत की शताब्दी और व्यापार, निवेश, उद्योग नामक पुस्तक भी लिखी है.

कांग्रेस के संगठन में निभाए खास दायित्व

1968 में वे युवक कांग्रेस में शामिल हुए. 1976 में उत्तर प्रदेश युवक कांग्रेस का उन्हें प्रभार मिला. 1970-81 तक वे अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य रहे. 1979 में युवा कांग्रेस की ओर से महाराष्ट्र के पर्यवेक्षक, 2000-2018 तक वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव, इसके बाद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने. सरकार गिरने के बाद वे वर्तमान में सदन में विपक्ष के नेता की भूमिका निभा रहे हैं. इसक अलावा मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं.

कमलनाथ के सियासी सफर के अहम पड़ाव

कमलनाथ को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपना तीसरा बेटा कहा था, जब उन्होंने 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार से मुकाबले में मदद की थी. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी छिंदवाड़ा लोकसभा सीट के प्रत्याशी कमलनाथ के लिए चुनाव प्रचार करने आई थीं, इंदिरा ने तब मतदाताओं से चुनावी सभा में कहा था कि कमलनाथ उनके तीसरे बेटे हैं, कृपया उन्हें वोट दीजिए.

संजय गांधी से दोस्ती

कमलनाथ संजय गांधी के स्कूली दोस्त थे, दून स्कूल से शुरू हुई दोस्ती, मारुति कार बनाने के सपने के साथ-साथ युवा कांग्रेस की राजनीति तक जा पहुंची थी. ऐसे भी कहा जाता है कि यूथ कांग्रेस के दिनों में संजय गांधी ने पश्चिम बंगाल में कमलनाथ को सिद्धार्थ शंकर रे और प्रिय रंजन दासमुंशी को टक्कर देने के लिए उतारा था.

दोस्ती के लिए गए थे जेल

इतना ही नहीं जब इमरजेंसी के बाद संजय गांधी गिरफ्तार किए गए तो उनको कोई मुश्किल नहीं हो, इसका ख्याल रखने के लिए जज के साथ बदतमीजी करके कमलनाथ तिहाड़ जेल भी पहुंच गए थे.

सांसद बन जीता जनता का दिल

आदिवासी इलाके छिंदवाड़ा से 1980 में पहली बार जीतने वाले कमलनाथ ने क्षेत्र की तस्वीर पूरी तरह से बदल दी. इलाके से नौ बार सांसद बनने के साथ उन्होंने यहां स्कूल-कॉलेज और आईटी पार्क तक बनवाए हैं. इतना ही नहीं स्थानीय लोगों को रोजगार और काम धंधा मिले, इसके लिए उन्होंने वेस्टर्न कोलफील्ड्स और हिंदुस्तान यूनीलिवर जैसी कंपनियां खुलवाई हैं. साथ में क्लॉथ मेकिंग ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, ड्राइवर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट भी उन्होंने इलाके में खुलवाए.

सिख दंगों में आया नाम

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी दंगों में उनका नाम भी आया था लेकिन उनकी भूमिका सज्जन कुमार या जगदीश टाइटलर जैसे नेताओं की तरह स्पष्ट नहीं हो सकी. उन पर आरोप है कि वे एक नवंबर, 1984 को नई दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज में उस वक्त मौजूद थे, जब भीड़ ने दो सिखों को जिंदा जला दिया था.

हवाला कांड के लगे थे आरोप

1996 में जब कमलनाथ पर हवाला कांड के आरोप लगे थे तब पार्टी ने छिंदवाड़ा से उनकी पत्नी अलका नाथ को टिकट देकर उतारा था, वो जीत गई थीं लेकिन अगले साल हुए उपचुनाव में कमलनाथ को हार का मुंह देखना पड़ा था. वे छिंदवाड़ा से केवल एक ही बार हारे हैं.

केवल एक चुनाव हारे कमलनाथ

वैसे इस हार के पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प बताई जाती है. दरअसल, कमलनाथ चुनाव हार गए थे तो उन्हें तुगलक लेन पर स्थित मिला हुआ बंगला खाली करने का नोटिस मिला, पहले उन्होंने कोशिश की वह बंगला उनकी पत्नी के नाम अलॉट हो जाए लेकिन नियमों के मुताबिक पहली बार चुनाव जीतने वाले लोगों को उतना बड़ा बंगला अलॉट नहीं किया जा सकता था, इसलिए एक साल बाद ही जब हवाला कांड की बात ठंडी हुई तो कमलनाथ ने अपनी पत्नी का इस्तीफा करा दिया. लेकिन उपचुनाव में कमलनाथ को सुंदर लाल पटवा ने हरा दिया था.

बिजनेस टायकून कमलनाथ

कमलनाथ खुद में एक बिजनेस टायकून हैं, उनका कारोबार रियल एस्टेटस, एविएशन, हॉस्पिटलिटी और शिक्षा तक फैला है.कमलनाथ के पास कुल 187 करोड़ रुपए की संपत्ति है. अभी तक 177 करोड़ रुपए की कुल संपत्ति के साथ आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पहले स्थान पर थे. कमलनाथ के पास कुल 7.09 करोड़ की चल संपत्ति है, जबकि 181 करोड़ रुपए की अचल संपत्ति है. इसमें परिवार इनके परिवार के स्वामित्व वाली कंपनियां और ट्रस्ट भी शामिल हैं. कमलनाथ और उनके परिवार से जुड़ी 23 कंपनियां हैं.वो छिंदवाड़ा जिले में 63 एकड़ जमीन के मालिक भी हैं. ये कारोबार उनके दो बेटे नकुलनाथ और बकुल नाथ संभालते हैं.

कमलनाथ को जन्मदिन पर भेंट की तलवार

पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के 75वें जन्मदिन पर उनके मीडिया समन्वयक नरेन्द्र सलूजा ने कमलनाथ को तलवार भेंट की. इस अवसर पर पूर्व मंत्री सज्जन वर्मा, अशोक सिंह, प्रवीण कक्कड, राजीव सिंह, एनपी प्रजापति, जेपी धनोपिया, प्रकाश जैन, रवि जोशी सहित कई कांग्रेस नेता उपस्थित थे.

Last Updated : Dec 2, 2021, 2:14 PM IST

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