भोपाल।मध्यप्रदेश में बीजेपी सरकार विकास का दावा तो करती है, लेकिन प्रदेश सरकार के साथ 16 नगर निगम बुरी तरह से कर्ज में डूबे हैं. मध्य प्रदेश के 16 में से 13 नगर निगमों पर 320 करोड़ रुपए का कर्ज है. चौंकाने वाला पहलू ये है कि इनमें से कई नगर निगमों ने फ्लोटिंग ब्याज दर पर पैसा ले रखा है. इसमें नंबर एक पर भोपाल नगर निगम है जिस पर सबसे ज्यादा 60 करोड़ 1 लाख रुपए का कर्ज है. मगर इससे ज्यादा चौंकाने वाला नाम नंबर 2 कर्जदार का है. ये हैं MP में कांग्रेस के सबसे नेता कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा नगर निगम का जो दूसरे पायदान पर है. बात करें मध्य प्रदेश सरकार की तो चुनावी साल में एमपी सरकार हर महीने 2 से 3 हजार करोड़ का ऋण ले रही है और इसी राह पर एमपी के सारे नगर निगम चल रहे हैं.
भोपाल सबसे ज्यादा कर्जदार: सबसे पहले राजधानी भोपाल के कर्ज की बात करें तो इस नगर निगम पर 60 करोड़ 1 लाख से ज्यादा का कर्ज है. जबकि कर्ज के मामले में कमलनाथ का गढ़ छिंदवाड़ा दूसरे पायदान पर है जिस पर 51 करोड़ 34 लाख का कर्ज है. तीसरे नंबर पर ग्वालियर है जिस पर 37 करोड़ 59 लाख रुपए का कर्ज है. वहीं चौथे पर जबलपुर आता है जहां 30 करोड़ 40 लाख का कर्ज नगर निगम पर है. ये लोन सीएम शिवराज के शहरी अधोसंरचना विकास योजना के दूसरे और तीसरे चरण के लिए लिया गया है.
इंदौर है मिसाल:इंदौर स्वच्छता के मामले में नंबर 1 पर है. इसके बावजूद इस शहर पर 25 करोड़ 85 लाख का ही कर्ज है. नगर निगम द्वारा इतना काम करने पर भी एमपी का ये शहर इतने कम कर्ज में डूबा है. वहीं ऋण के मामले में मुरैना, रतलाम भी पीछे नहीं है. रतलाम पर 27 करोड़ 41 लाख और मुरैना पर 27 करोड़ 11 लाख का कर्ज है. जबकि सबसे कम कर्ज कटनी, बुरहानपुर और खंडवा के नगर निगम पर है. सभी पर करीब 8 करोड़ का कर्ज है. हालांकि 3 नगर निगमों सतना, सिंगरौली और उज्जैन की कर्ज की स्थिति की जानकारी सदन को नहीं दी गई है.
नगर निगम को 15 साल के लिए मिला कर्ज: नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविंद सिंह के सवाल के लिखित जवाब में नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह ने विधानसभा में यह जानकारी दी है. बताया जा रहा है कि नगर निगमों ने ये कर्ज मध्य प्रदेश अर्बन डेवलपमेंट कंपनी लिमिटेड (MPUDCL) के माध्यम से बैंकों से लिया है. ये कर्ज चुकाने के लिए राज्य सरकार को मूलधन और ब्याज की राशि का 75% भुगतान करना पड़ेगा. वहीं नगर निगम को सिर्फ 25% राशि ब्याज के रुप में देना है. ये राशि नगर निगम को 15 साल के लिए दी गई है.