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चुनावी साल में आशा कार्यकर्ता बनेंगी सरकार की मुश्किल! बोलीं- शिवराज भईया हम भी लाडली बहनें, हमारे आत्मसम्मान का भी ख्याल करो

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Published : Jul 11, 2023, 1:02 PM IST

एमपी में चुनावी साल में आशा कार्यकर्ता शिवराज सरकार के लिए मुश्किल बन सकती है. आशा कार्यकर्ताओं ने कहा कि शिवराज भईया हम भी लाडली बहनें है. हमारे आत्मसम्मान का ख्याल करो.

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चुनावी साल में आशा कार्यकर्ता बनेंगी सरकार की मुश्किल

भोपाल। पूरे प्रदेश में 84 हजार के लगभग आशा कार्यकर्ता चुनाव से पहले बीजेपी का बड़ा संकट बन रही हैं. पिछले 18 साल से मानदेय बढ़ाने की मांग कर रही आशा कार्यकर्ता शिवराज सरकार से आर पार की लड़ाई के मूड में आ गई हैं. दो हजार रुपए प्रतिमाह के मानदेय पर काम कर रही आशा कार्यकर्ताओं ने 20 जुलाई तक का सरकार को अल्टीमेटम दिया है. इसके बाद आशा कार्यकर्ताओं का संयुक्त मोर्चा सरकार के खिलाफ पूरे प्रदेश में आंदोलन के साथ मैदान में उतरेगा. आशा कार्यकर्ताओँ ने सीएम शिवराज से सवाल किया है कि संवेदनशील मुख्यमंत्री अगर घर बैठे अपनी बाकी बहनों को हजार रुपए लाडली बहना योजना के दे सकते हें. तो दिन के 12 से 18 घंटे काम करने वाली आशा कार्यकर्ताओं को जीने लायक वेतन क्यों नहीं. मध्यप्रेश के स्वास्थ्य सिस्टम की रीढ़ आशा कार्यकर्ता और सहयोगिनी का गांव-गांव में इतना बड़ा नेटवर्क है कि वे आसानी से वोट प्रभावित कर सकती हैं.

माताओं बहनों की सेहत संभाल रही आशा का मानदेय कुल दो हजार:आशा कार्यकर्ता प्रदेश के गांव गांव में मातृत्व स्वास्थय की रीढ़ कही जा सकती है. विवाह के पंजीयन के साथ किसी भी परिवार से आशा कार्यकर्ता का जो जुड़ाव होता है. वो फिर महिला के गर्भधारण और बच्चों के जन्म के बाद उसका टीकाकरण फिर सरकार के अलग अलग कार्यक्रम और सरकारी योजनाओं के प्रचार के साथ आगे बढ़ता जाता है. लेकिन इतनी जवाबदारियों के बाद आशा कार्यकर्ता के हिस्से क्या आता है.

लक्ष्मी कौरव क्या बोली: इस पर आशा कार्यकर्ता संगठन की प्रमुख लक्ष्मी कौरव बताती हैं कि "केवल दो हजार रुपए आशा कार्यकर्ता को मिलते हैं जिसमें वो इन सब जवाबदारियों के साथ हर दिन करीब पचास घरों को विजिट करती है. सहयोगी को 9 हजार रुपए प्रतिमाह का मानदेय दिया जाता है लेकिन उसकी भी जिम्मेदारी 15 से 20 गावों की होती है. हम18 साल से ये गुहार लगा रहे हैं कि आशा कार्यकर्ता का मानदेय दस हजार और सहयोगी का 15 हजार किया जाए. 18 वर्ष में राज्य सरकार की ओर से अब तक एक रुपए की राशि आशा कार्यकर्ताओं को नहीं मिली. जबकि आशा कार्यकर्ता की बदौलत ही सरकार को इतने पुरस्कार मिले हैं. आशा कार्यकर्ताओं ने अच्छा काम किया तो ग्रामीण क्षत्रों के बाद शहरी क्षेत्रों में भी उनकी तैनाती की गई.

आशा कार्यकर्ता छुट्टी पर होतो बैठ जाएगा सिस्टम:लक्ष्मी बताती हैं कि "पूरा स्वास्थ्य सिस्टम गांव का आशा कार्यकर्ता पर टिका हुआ है. हमें 16 तरह की दवाईयों की ट्रेनिंग दी जाती है. गांव की प्राथमिक डॉक्टर कहे जाते हैं हम. गर्भवती बच्चों की ट्रेंकिंग हमारी जिम्मेदारी है. कितने टीके कब लगना है ये हमारी जवाबदारी है. कौन सी हाईरिस्क प्रैग्नेंसी है ये हम बताते हैं . सरकार के जितने अभियान होते हैं उनको जमीन तक पहुंचाने की जवाबदारी है. कोविड में जब सब घर पर थे आशा कार्यकर्ता तो तब भी काम कर रही थी. फिर शिक्षा स्वास्थ्य पंचायत हर सर्वे मे हमारी ड्यूटी लगती है."

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दस लाख वोटर को कर सकते हैं प्रभावित:आपके साथ ऐसी कितनी बड़ी ताकत है कि आप राजनीतिक दलों के लिए आशा कार्यकर्ता की नाराजगी संकट बन सकती है. इस सवाल पर लक्ष्मी कहती हैं कि 84 हजार आशा कार्यकर्ता हैं. परिवार को जोड़ें तो ये आंकड़ा पांच लाख तक जाता है. अगर हम जिनके संपर्क में रहते हैं जिनके हर संकट में हमारी उपस्थिति रहती है तो करीब दस लाख वोटर है, जिसे हम सीधा प्रभावित कर सकते हैं. जो हमसे पूछकर वोट डालता है. आशा कार्यकर्ताओं ने सरकार को 20 जुलाई तक का अल्टीमेटम दिया है. फिर नए सिरे से आंदोलन की रणनीति बनाई जाएगी.

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