MP BJP Campaign: चुनाव तक रुठे-छूटे को मनाने का अभियान, क्योंकि हर एक कार्यकर्ता जरुरी होता है
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Published : Apr 29, 2023, 4:11 PM IST
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Updated : Apr 29, 2023, 4:33 PM IST
चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं बीजेपी अपने संगठन में निष्क्रिय कार्यकर्ताओं को फिर एक्टिव मोड में लाने का प्रयास कर रही है. जो कार्यकर्ता पार्टी से नाराज चल रहे हैं उनको मनाने के लिए पार्टी ने बैठकें करना शुरु कर दिया है. यू कहें तो अब बीजेपी में मान-मनौव्वल का दौर शुरु हो गया है.
भाजपा का अभियान
भोपाल। संगठन गढ़े चलो के मंत्र पर चलने वाली मध्यप्रदेश बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत ही क्या 2023 के चुनाव में सबसे बड़ी कमजोरी है. बीजेपी में चेहरा बेशक नेता होते हैं लेकिन चुनाव कार्यकर्ता लड़ता है लेकिन इन चुनाव में बीजेपी का ये पॉवर बैंक इनएक्टिव मोड में चला गया है. असल निकाय चुनाव के नतीजों के साथ पार्टी देख चुकी है. लिहाजा अब इस निष्क्रिय हुए कार्यकर्ता को एक्टिव मोड में लाने के लिए पार्टी में नाराज कार्यकर्ताओं की सूची तैयार कर निष्क्रिय कार्यकर्ताओ को सक्रिय करने के लिए जिला स्तर पर अभियान चलेगा. बात नहीं बनी तो दूसरे चरण में संभागीय स्तर पर पार्टी के असतुष्टों की संभाल की कोशिश होगी.
बीजेपी में कैंपेन..हर एक कार्यकर्ता जरुरी होता है:दमोह में जयंत मलैया के बेटे सिध्दार्थ मलैया को जिस तरह पार्टी के तमाम दिग्गज नेताओं की मौजूदगी में घर वापिसी कराई गई. इसे ट्रेलर की तरह देखा जाए तो अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि बीजेपी के लिए हर एक रुठा छूटा ही जरुरी नहीं है. निष्कासितों को भी ससम्मान पार्टी में लाया जा रहा है. किसी तरह के कोई डेंट की कहीं गुंजाइश ना रहे. छोटे बड़े हर नेता पर निगाह है इसलिए सिध्दार्थ मलैया के साथ पांच मंडल अध्यक्षों की भी घर वापिसी कराई गई.
निष्क्रिय कार्यकर्ता को एक्टिव मोड में लाने बैठकें:बीजेपी संगठन में कोई भी काम अभियान की शक्ल में ही होता है लिहाजा अब ये भी एक अभियान ही है कि मंडल स्तर के निष्क्रिय मोड में चल रहे कार्यकर्ताओं की पहले सूची तैयार हो. फिर उनके साथ जिला स्तर तक बैठक कर उन्हें चुनाव के पहले पहले सक्रिय कर लिया जाए. समझाइश के भी कई दौर रखे गए हैं. पहले चरण में मंडल फिर जिला स्तर और फिर बात ना बनें तो संभाग स्तर पर बैठकें आयोजित कर कार्यकर्ताओं को मनाया जाएगा.
क्या भर पाएगी नई पुरानी बीजेपी की खाई:2023 का विधानसभा चुनाव बीजेपी का पहला ऐसा चुनाव होगा. जिसमें नई और पुरानी बीजेपी के बीच खाई चुनाव नजदीक आते तक बढ़ती जा रही है. 2020 के बाद बीजेपी ने सत्ता तो पा ली कार्यकर्ताओ में जो साख थी संगठन की इस समझौते में खो दी गई. फिर जिस तरह से सत्ता के साहूकार आए और पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता दरकिनार हुए उसके बाद बीजेपी कार्यकर्ता को ये महसूस होने लगा कि पार्टी में ये एक हिस्से चुनावी इस्तेमाल के लिए ही है. बीजेपी कार्यकर्ता की खासियत है कि उसकी पार्टी से प्रतिबध्दता कभी खत्म नहीं होती. बीजेपी का असल कार्यकर्ता कभी पार्टी छोड़कर नहीं जाएगा. लेकिन संगठन का संकट है उसका निष्क्रिय हो जाना. निष्क्रिय कार्यकर्ता पार्टी संगठन का सबसे बड़ा इम्तेहान लेता है. बीजेपी एमपी में अपने ही कार्यकर्ता के उसी इम्तेहान से गुजर रही है.