भोपाल।क्या नियमित होने से मां की दिक्कतें बच्चे को पालने की चुनौती बदल जाती है. क्या नियमित कर्मचारी के तौर पर काम कर रही मां अलग होती है और संविदा पर काम कर रही मां अलग. ये सवाल इसलिए उठा कि 5 जून 2018 को जो संविदा नीति जारी की गई उसमें संविदा कर्मचारी को प्रसूति अवकाश तीन महीने ही तय किया गया. जबकि भारत सरकार ने ये प्रावधान किया है कि मजदूरों को भी 6 महीने का प्रसूति अवकाश दिया जाएगा. फिर चाहे वो महिला कर्मचारी किसी प्राइवेट संस्थान में हो या शासकीय संस्थान में. सर्व शिक्षा आभियान विभाग और पर्यावरण ये दो ऐसे विभाग हैं जहां महिला कर्मचारियों को 6 महीने का प्रसूति अवकाश मिलता है. बाकी सभी में केवल तीन महीने का अवकाश है.
एक साल अटकी फाईल:चुनाव के दौरान जिस साइलेंट वोटर को गेम चेंजर की तरह इस्तेमाल किया जाता है. उस महिला वोटर से जुड़ी समस्याओं के लिए सिस्टम में कितनी संवेदनशीलता है. ये भी जान लीजिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी ये घोषणा कर चुके हैं कि, संविदा महिला कर्मचारियों को नियमित कर्मचारियों की तरह ही 6 महने का प्रसूति अवकाश दिया जाए लेकिन घोषणा के अमल की स्थिति ये है कि इससे संबंधित फाईल एक साल से वित्त विभाग में अटकी हुई है. मध्यप्रदेश संविदा अधिकारी कर्मचारी संघ के प्रदेशाअध्यक्ष रमेश राठौर बताते हैं सिस्टम में मां बनने जा रही स्त्री के लिए कितनी संवेदनशीलता है इसकी मिसाल देखिए आपकि अफसरों को इस बात की चिंता ही नहीं है कि, घोषणा के बावजूद अमल में नहीं आने से कितनी संविदा महिला कर्मचारी अपने अधिकार से वंचित हैं. मातृत्व अवकाश को लेकर पूरे सिस्टम में बड़ी विसंगति है.
संविदा पर होने से मां बदल जाती है क्या:मातृत्व अवकाश के लिए सुषमा द्विवेदी लंबी कानूनी लड़ाई लड़ चुकी हैं. वे सवाल करती है कि संविदा कर्मचारी होने से क्या मां के दायित्व उसकी कठिनाईयां उसके शरीर को गर्भधारण के साथ होने वाला नुकसान ये सब बदल जाता है क्या. ये विज्ञान कहता है कि किसी भी मां को बच्चे के जन्म के बाद सामान्य शक्ति से काम करने में 6 महीने का समय लगता है. ये तो हर मां के लिए है. जबकि भारत का संविधान हर कामकाजी मां को 6 महीने के मातृत्व अवकाश की सुविधा देता है. लोकस्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग में कार्य करती रहीं संविदा कर्मचारी सुषमा ने मातृत्व अवकाश के लिए कानूनी लड़ाई उन्होंने लड़ी.
महिला की हिम्मत:उमरिया में पीएचई कार्यालय में संविदा कर्मचारी के रुप में काम करते समय सुषमा का दिसंबर 2016 से मई 2017 तक की समयावधि का प्रसूति अवकाश केवल इस वजह से मंजूर नहीं किया गया कि, वो नियमित कर्मचारी नहीं हैं. इसके साथ ही संविदा कर्मचारी के तौर पर उनका जो कॉन्ट्रेक्ट है. उसमे प्रसूतिव अवकाश का कॉलम ही नहीं है. सुषमा ने यह लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी. वे कहती हैं जब मेरा बच्चा 6 महीने का था तब मैं अपनी नौकरी के साथ अदालत के चक्कर लगा रही थी. ये समय किसी भी स्त्री के लिए काफी मुश्किल समय होता है. लेकिन मैनें हिम्मत से लडाई लड़ी कि मेरे बाद आने वाली महिला कर्मचारियों के मां बनने का रास्ता संविदा कर्मचारी के तौर पर आसान हो सके. सुषमा बताती हैं समय लगा मेरा 6 महीने का बच्चा पांच साल का हो गया. लेकिन इंसाफ तो मिला.