भोपाल। कुटुम्ब न्यायालय में घरेलू समस्यायों को निपटाने पर जोर दिया जाता है. कोशिश होती है कि पति पत्नी के रिश्तों में प्यार मोहब्बत और सामंजस्य बना रहे. विघटन की स्थिति को रोकने की कोशिश की जाती है. लेकिन इस कोरोना काल ने लोगों को रिश्तों की अहमियत क्या होती है ये समझा दिया है. शायद यही वजह है कि अब वादी अपने संबंधों को बनाए रखने के इरादे के साथ 10 जुलाई 2021 को प्रस्तावित लोक अदालत में जाने को तैयार हैं.
10 जुलाई 2021 को पूरे प्रदेश मे लोक अदालत का आयोजन किया जा रहा है. भोपाल स्थित कुटुम्ब न्यायालय में भी लोक अदालत का आयोजन किया जा रहा है. अपनी समस्यायों को लेकर अदालत पहुंचे 1 हजार लोगों को आपसी समझौते की सलाह देते हुए नोटिस जारी की गई है, जिस पर सकारात्मक जवाब मिलने लगा है.
लॉकडाउन ने खोले रिश्तों के लॉक
कोरोना महामारी ने मानव जाति को काफी नुकसान पहुंचाया है. लेकिन लॉकडाउन के दौर में एक मौका भी मुहैया कराया. घर में रहकर एक दूसरे को समझने का और एक दूसरे के साथ अच्छा वक्त बिताने का. कुछ मामलों में भेद खुले, दूरियां बढ़ीं तो कुछ में नजदीकियों ने उलझे रिश्तों को सुलझाने का काम किया.
कुटुम्ब न्यायालय के प्रमुख न्यायाधीश आर.एन. चन्द्र ने बताया कि- कोरोना कर्फ्यू के चलते पति पत्नी काफी समय घरो में बंद रहे, इसी के चलते उनके बीच मे काफी बातो की जिनकी पहले परदेदारी थी,वो उजागर हो गई,जिसके चलते उनके बीच मे विवाद बढ़े. ऐसे करीब कुटुम्ब 40 नए मामले रोज आ रहे हैं. वहीं कोरोना संक्रमण के चलते बीमारी,आर्थिक तंगी,और बच्चों की जरूरतों,और पढ़ाई के चलते कुछ पति पत्नी एक भी हुए हैं.
किस्से कोरोना के
किस्सा नं 1
पुराने भोपाल के एक मामले में जब पत्नी कोरोना से पीड़ित हुई तो मायके पक्ष ने उसकी देखभाल नही की. जब उसने अपने पति को फोन किया तो अस्पताल से छुट्टी के बाद पति उसे अपने साथ अपने घर ले गया और पत्नी की देखभाल की. जिसके चलते उन दोनों ने फिर से साथ रहने का निर्णय लिया. अब वे अपने तीन साल पुराने गिले शिकवे भूल कर एक साथ रह रहे है.
रिश्तों में जहाँ एक और प्रेम और समर्पण एक दूसरे के प्रति साथ रहने का भाव जागृत करता है,वही इस महामारी ने काफी लोगो को एक दूसरे की अहमियत का अहसास करवा दिया है.
किस्सा नं 2
भोपाल के ही साकेत नगर में रहने वाले एक निजी क्षेत्र में काम करने वाला व्यक्ति अपनी 5 साल की बच्ची के साथ रह रहा था. पिछले लगभग 7 साल से उसका मामला न्यायालय में चल रहा था, परंतु कोरोना काल मे बच्ची की देखभाल के लिये उसने अपनी पत्नी को घर आने का आग्रह किया. उसकी परेशानी में पत्नी ने पूरा सहयोग दिया. दोनों के बीच आपसी समझ बड़ी और अब कोरोना के कर्फ्यू हटने के बाद भी दोनों ने एक साथ रहने का निर्णय लिया.
वकील की भी ज़रूरत नहीं
भोपाल में ऐसे लगभग 100 मामले ऐसे आए है, जिसमे लोग अपने पुराने विवाद भूल कर अब एक साथ रहने लगे है. अदालतें बंद थीं वादियों को वकील भी नहीं मिल पा रहे थे. सो बिना वकील के 10 जुलाई को राष्ट्रीय लोक अदालत लगाने का निर्णय लिया गया. इस अदालत में 1000 लोग जिनके पारिवारिक विवाद हल हो सकते हैं या जिनका कुटुम्ब न्यायालय में परामर्श लगातार चल रहा है या फिर परामर्श दौर में आपसी रजामंदी हो सकने की संभावनाएं हैं का मामला सुलझ जाए. कोशिश होगी कि अदालतों में अनावश्यक रूप से पेन्डिंग पड़े मामलों का शीघ्र निराकरण किया जा सके.