भोपाल। कांग्रेस के मुखर विधायक जीतू पटवारी क्या चुनावी साल में अपनी ही पार्टी के लिए संकट बन रहे हैं. विधानसभा में पटवारी के तेवर, सरकार की बढ़ती परेशानी और निलंबन..इस पूरे एपिसोड के बाद क्या वे कांग्रेस के भीतर ही अपनी हीरोइक इमेज बनाने में जुट गए हैं. 13 मार्च को होने जा रहे प्रदर्शन को लेकर पार्टी के अधिकृत बयान से पहले जीतू पटवारी के एलान को इन्हीं मायनों में देखा जा रहा है. बीजेपी ने इसे मुद्दा भी बनाया है. इससे पहले हुए विधानसभा सत्र में भी राज्यपाल के अभिभाषण का बहिष्कार करके जीतू पटवारी ने कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी थीं. तब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को पटवारी के बयान से किनारा करना पड़ा था. अब पार्टी के विधानसभा घेराव को लेकर भी कमोबेश स्थितियां ऐसी ही बन रही हैं.
जीतू का जुनून, पार्टी की मुश्किल: इसमें दो राय नहीं हैं कि जीतू पटवारी की गिनती कांग्रेस के मुखर नेताओं में होती है. ये भी सही है कि वे कांग्रेस के ऐसे विधायक हैं, जिनके बयान बीजेपी सरकार को असहज करते रहे हैं. सरकार पर हमेशा तीखा हमला बोलते हैं पटवारी. लेकिन पिछले दो साल से जीतू पटवारी ने अपनी राजनीति का अंदाज जिस तरह बदला है, जिस तरह वे लगातार एमपी में खुद को अलग दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, इसे चुनावी साल में कांग्रेस की सेहत के लिए क्या ठीक कहा जा सकता है. जीतू पटवारी समानान्तर लकीर खींच रहे हैं. जिस समय कमलनाथ और शिवराज के बीच शह और मात के अंदाज में सवाल पर सवाल का दौर चल रहा है, उसी दौरान जीतू पटवारी का सीएम शिवराज को पत्र लिखकर बारिश और ओले से खराब हुई फसल के सर्वे का मुद्दा उठाना, किसानों को तीन हजार क्विंटल के समर्थन मूल्य की मांग रखना और इस पत्र में भी खुद को कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बताना. इस पूरे एपिसोड को बीजेपी ने जीतू पटवारी की कमलनाथ को सीधी चुनौती की तरह पेश किया है.