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'महाराज' के लिए 'नाथ' को अनाथ कर ही माने बागी, इस कुर्बानी का क्या होगा अंजाम?

सियासत में कब कौन दोस्त रहता है और कब दुश्मन बन जाता है. इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है, यही राजनीतिक दुश्मनी कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को ले डूबी, लेकिन कमलनाथ सरकार को डुबाने वाली बागियों की कश्ती पर भी खतरा मंडरा रहा है कि आखिर उनकी कुर्बानी का क्या अंजाम होगा.

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Published : Mar 21, 2020, 2:03 PM IST

Updated : Mar 21, 2020, 5:27 PM IST

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भोपाल। अपनों की बेवफाई क्या होती है, ये कमलनाथ से बेहतर कौन जानता होगा, जबकि सिंधिया के लिए इस हद तक कुर्बानी देना भी आसान नहीं था, फिर भी सिंधिया समर्थक विधायक वफादारी की कसौटी पर खरे उतरे और कमलनाथ सरकार की विदाई के बाद घर वापस आ गए, लेकिन अभी बहुत सारे इम्तिहान बाकी है क्योंकि अब इनके सियासी भविष्य पर प्रश्नवाचक चिह्न लग गया है कि अब इनका क्या होगा.

'महाराज' के लिए 'नाथ'

अपने नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए जिन 6 मंत्रियों और 16 विधायकों ने कुर्बानी दी है, अभी उनके सियासी भविष्य का फैसला होना बाकी है, जबकि उनके नेता सिंधिया का राजनीतिक भविष्य तो पूरी तरह सेट लगता है. अगले 6 महीने में जिन 24 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उसके लिए बीजेपी इन सभी को उम्मीदवार बनाएगी या इनके बदले किसी और को मौका देगी, जबकि कुछ बागी सिंधिया के साथ तो हैं, पर अंतर्मन से बीजेपी को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं.

प्रदेश में पहली बार एकसाथ 24 सीटों पर उपचुनाव होना है और सभी क्षेत्रों में सिंधिया का दबदबा है, जब सिंधिया पाला बदलकर बीजेपी के हो गए हैं तो वहां कांग्रेस के सामने इन क्षेत्रों में नेतृत्व का संकट खड़ा हो गया है कि यहां कांग्रेस किसके दम पर बीजेपी को मात देगी क्योंकि जिनके दम पर कांग्रेस यहां दम भरती थी वो ही अब अपने नहीं रहे. इससे इतर बीजेपी के सामने भी संकट कम नहीं है क्योंकि इतने दिनों से भाजपाई जिनके खिलाफ लड़ते रहे हैं, वो आसानी से इन्हें हजम नहीं होंगे.

ग्वालियर-चंबल अंचल में जहां बीजेपी के नरेंद्र सिंह तोमर, वीडी शर्मा, प्रभात झा, नरोत्तम मिश्रा, फूल सिंह बरैया के अलावा कई और भी दिग्गज हैं, जो यहां सिंधिया से लड़कर बीजेपी का कमल खिलाते रहे हैं, लेकिन अब सिंधिया का साथ मिलने के बाद बीजेपी यहां मजबूत हुई है, जबकि कांग्रेस अनाथ सी हो गई है, लेकिन फिर भी बीजेपी के लिए अपनों को मनाना बड़ी चुनौती है. ऐसे में बीजेपी सभी बागियों को टिकट न दे तो इनका क्या होगा और बीजेपी सभी को टिकट दे दे तो फिर भाजपाइयों का क्या होगा, जो अरसे से अपना भविष्य संवारने की आस में बैठे हैं.

हालांकि, उपचुनाव में जीत के लिए कांग्रेस भी पूरा दम लगाएगी, लेकिन कांग्रेस के लिए ये राह आसान नहीं है, पिछले विधानसभा चुनाव में जहां पंजे की पकड़ सबसे अधिक मजबूत हुई थी और ग्वालियर-चंबल अंचल की 34 में से 26 सीटें जीती थी, वहीं अब कांग्रेस सबसे ज्यादा बेबस नजर आ रही है क्योंकि अब यहां के समीकरण बदल चुके हैं, लेकिन इन बदले सियासी समीकरण के बीच इन बागियों का क्या होगा, जिन्होंने अपने नेता के लिए इतनी बड़ी कुर्बानी दी है, क्या बीजेपी में इनका वो रसूख कायम हो पाएगा जो कांग्रेस में था या वो पद इन्हें दोबारा मिलेगा, इस कुर्बानी का अंजाम क्या होगा, इस पर अभी भी सस्पेंस बना हुआ है.

Last Updated : Mar 21, 2020, 5:27 PM IST

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