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आदिवासी वोट बैंक मजबूत कर रहीं पार्टियां, 15 नवंबर को जबलपुर में कांग्रेस भी करेगी जनजातीय सम्मेलन

एमपी में आदिवासी वोट बैंक को लेकर सियासत तेज हो गई है. एक ओर जहां शिवराज सरकार 15 नवंबर को आदिवासी जनजातीय सम्मेलन करने जा रही है. वहीं कांग्रेस सरकार ने भी जनजातीय सम्मेलन का ऐलान कर दिया है. इस कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ शामिल होंगे. बता दें कि एमपी में आदिवासी 84 विधानसभा सीटों पर काबिज हैं.

adivasi voter
आदिवासी वोटर

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Published : Nov 10, 2021, 9:49 AM IST

भोपाल।15 नवंबर को सीएम शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj Singh Chouhan) जनजातीय महासम्मेलन आयोजित कर रही है. वहीं कार्यक्रम में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) भी भोपाल आ रहे हैं. ऐसे में मध्य प्रदेश में आदिवासी वोट (Adivasi Voter) बैंक को लेकर सियासत तेज हो गई है. अब कांग्रेस ने भी जबलपुर में जनजातीय सम्मेलन का ऐलान कर दिया है, जिसमें कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ (Kamalnath) भी शामिल होंगे. कांग्रेस के जनजातीय सम्मेलन को लेकर मंगलवार को पीसीसी में बैठक का आयोजन किया गया. सम्मेलन में शामिल होने के लिए प्रदेश भर से आदिवासियों को आमंत्रित किया गया है.

कांग्रेस जबलपुर में कर रही आदिवासी सम्मेलन
दरअसल, कांग्रेस भाजपा को जबलपुर में आदिवासी सम्मेलन आयोजित कर अपनी ताकत बताना चाहती है. इस कार्यक्रम की जिम्मेदारी पूर्व वित्त मंत्री तरुण भनोट को सौंपी गई है. मध्य प्रदेश में आदिवासियों को अपने पक्ष में लाने के लिए पार्टियां कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है. यही वजह है कि अब से पहले 18 सितंबर को जबलपुर में राजा शंकरशाह- रघुनाथ शाह के शहीदी दिवस पर बीजेपी के आयोजन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शामिल हुए थे. शाह के बाद अब मोदी के दौरे से लग रहा है कि भाजपा 2023 के चुनावों में आदिवासियों को लुभाने की कोशिश कर रही है.

मध्य प्रदेश में आदिवासी वोटरों की दो करोड़ संख्या है.

84 विधानसभा सीटों पर छाप छोड़ते हैं आदिवासी
आदिवासियों को लुभाने का बड़ा कारण है वहां का वोट बैंक. दरअसल, एमपी में 43 समूहों वाले आदिवासियों की आबादी 2 करोड़ से ज्यादा है, जो 230 में से 84 विधानसभा सीटों पर असर डालती. 2018 के विधानसभा चुनाव में BJP को आदिवासियों ने बड़ा नुकसान पहुंचाया था. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 84 में से 34 सीट पर जीत हासिल की थी. वहीं, 2013 में इस इलाके में 59 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी. 2018 में पार्टी को 25 सीटों पर नुकसान हुआ है. वहीं, जिन सीटों पर आदिवासी उम्मीदवारों की जीत और हार तय करते हैं. वहां सिर्फ बीजेपी को 16 सीटों पर ही जीत मिली है. 2013 की तुलना में 18 सीट कम हैं. अब सरकार आदिवासी जनाधार को वापस बीजेपी के पाले में लाने की कोशिश में जुटी है.

कमलनाथ ने की थी विश्व आदिवासी दिवस की शुरुआत
अगर बात करें आदिवासियों पर सियासत की तो इसकी नींव विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान रख चुकी थी. दरअसल, कमलनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस को सार्वजनिक अवकाश शुरू किया था. शिवराज सरकार के फिर से सत्ता में आने के बाद पिछले साल यानी 2020 को भी 9 अगस्त को सार्वजनिक अवकाश था, लेकिन इस साल सार्वजनिक अवकाश की सूची से विश्व आदिवासी दिवस को हटा दिया गया. कमलनाथ ने इसे मुद्दा बनाने में देर नहीं की थी. फिर शिवराज ने ऐलान किया था कि 15 नवंबर को प्रदेश में शहीद बिरसा मुंडा की जंयती पर प्रदेश में बड़ा आयोजन किया जाएगा.

मध्य प्रदेश में सरकार बनाने में आदिवासी निभाते हैं अहम भूमिका.

कांग्रेस ने निकाली थी आदिवासी अधिकार यात्रा
आदिवासी वोटरों को अपने पाले में करने के लिए भाजपा और कांग्रेस अब आमने-सामने आ चुके हैं. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उप चुनाव से पहले बड़वानी से आदिवासी अधिकार यात्रा निकाली थी, तो बीजेपी हमलावार हो गई. बीजेपी नेताओं ने इसे धोखा यात्रा करार दिया था और साेशल मीडिया पर कैंपेन चला दिया. वहीं कांग्रेस ने भी इसका जवाब देने में देर नहीं की. पीसीसी ने कमलनाथ सरकार में आदिवासियों के लिए किए गए कामों का वीडियो जारी कर दिया था.

एक नजर में देखें आदिवासी बहुल्य सीटों के चुनावी समीकरण

  • 2003 विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 41 सीटों में से भाजपा ने 37 सीटों पर कब्जा जमाया था. चुनाव में कांग्रेस केवल 2 सीटों पर सिमट गई थी.
  • 2008 के चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई. इस चुनाव में भाजपा ने 29 सीटें जीती, जबकि कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की.
  • 2013 के चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा ने 31 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आईं थीं.
  • 2018 के इलेक्शन में आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा ने 16 सीटें जीतीं और कांग्रेस ने 30 सीटें जीत लीं. एक सीट निर्दलीय के खाते में गई.

मध्य प्रदेश की जनजातियां
2011 जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश में आदिवासियों की जनसंख्या प्रदेश की कुल आबादी की 20 फीसदी है. आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में आदिवासी समुदाय के डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग निवास करते हैं. मध्य प्रदेश में 43 प्रकार के आदिवासी समूह निवास करते हैं. मध्य प्रदेश में भील भिलाला आदिवासी समूह की जनसंख्या 60 लाख से ज्यादा है, वहीं गोंड समुदाय के आदिवासियों की जनसंख्या भी 60 लाख से ज्यादा है. भील-भिलाला, गोंड के अलावा मध्य प्रदेश में कोलस कोरकू सहरिया आदिवासी समुदाय के लोग निवास करते हैं

आदिवासियों के खिलाफ देश में सबसे ज्यादा अपराध
देश भर में आदिवासियों के उत्पीड़न के मामले सामने आते रहते हैं, लेकिन यह जानकर हैरानी होगी कि इस लिस्ट में मध्य प्रदेश अव्वल है. हाल ही में पुलिस थाने में आदिवासी युवक की मौत हो गई. इसे लेकर खूब राजनीति हुई. एमपी में आदिवासी का मसीहा कौन है, यह खुद आदिवासी भी नहीं जानते हैं. इससे पहले भी काफी मामले दर्ज हुए हैं.

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राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (NCRB) 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में 2020 में इस वर्ग के उत्पीड़न के 2401 प्रकरण दर्ज हुए हैं, जो वर्ष 2019 में दर्ज 1922 प्रकरण की तुलना में 20% ज्यादा हैं. इस वर्ग के 59 लोगों की हत्या हुई है और महिलाओं पर हमले के 297 प्रकरण दर्ज हुए हैं. बच्चों के मामले में भी प्रदेश सुरक्षित नहीं है. यहां रोज लगभग 46 बच्चों का अपहरण, दुष्कर्म और हत्या हुई है.

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