भोपाल। मध्यप्रदेश में यदि सबसे अधिक साइबर ठगी के मामले आते हैं तो वो है भोपाल.. लेेकिन इसके विपरीत यदि इनकी जांच की बात की जाए तो थानों में साइबर सेल के नाम पर खानापूर्ति है, जिन पुलिसकर्मियों को साइबर की जिम्मेदारी दी गई है, वे रुटीन काम में उलझे रहते हैं. यदि बीते एक साल की बात करें तो करीब 1600 शिकायतें सिर्फ भोपाल जिले में आई हैं, लेकिन इनमें से महज 47 मामलों में ही पुलिस कोई कार्रवाई कर पाई है. जिन मामलों की बात यहां हो रही है, वे सभी एक लाख रुपए से कम ठगी वाले हैं.
बड़ी बात यह है कि थानों में दर्ज होने वाले इन तमाम साइबर क्राइम के मामलों की निगरानी का जिम्मा डीसीपी रैंक के अफसर के पास है, लेकिन इन मामलों में कार्रवाई नहीं हो रही है और तर्क दिया जा रहा है कि वारदात करने वाले दूसरे राज्य या दूसरे देश के हैं. ऐसे में इन्हें पकड़ना मुश्किल है, लेकिन असल समस्या दूसरी है. दरअसल थाने में साइबर क्राइम के लिए अलग से टीम ही नहीं है, यही वजह है कि बीते एक साल में सिर्फ भोपाल के भीतर 5 करोड़ रुपए से अधिक की ठगी होने के बाद भी 47 केस में कोई कार्रवाई हो सकी है.
दूसरे कामों में उलछी रहती है टीम:ऐसा नहीं है कि साइबर के लिए टीम नहीं दी गई. अभी भोपाल में 10 एसआई साइबर क्राइम टीम को दिए गए हैं, वहीं हर थाने में एक एसआई को साइबर क्राइम को पकड़ने की ट्रेनिंग दी गई. इनके अलावा करीब 110 सिपाही ऐसे हैं, जिन्हें साइबर गुर सिखाएं हैं, लेकिन इन्हें दूसरे काम में लगाकर रखा जाता है, जबकि इन्हें काम करने के लिए हाइटेक लैपटॉप, जरूरी सॉफ्टवेयर्स यूनिट भी दी गई है. इस मामले में भोपाल कमिश्नर ऑफ पुलिस हरिनारायण चारी मिश्र का कहना है कि "साइबर क्राइम से निपटने के लिए लगातार ट्रेनिंग दी जा रही है."