भोपाल(Bhopal)। कोरोना के भयावह दौर में हजारों लोगों ने अपनी जान गवाई. इन सांसों की लड़ाई में हजारों लोगों ने अपनी जिंदगी गवा दी.अंतिम संस्कार के बाद बचे अवशेष ही आने वाले पीढ़ी के काम आने जा रही है इसके लिए एक सार्थक पहल शुरू की गई है. भदभदा विश्राम घाट में मृतकों की राख को विशेष जापानी तकनीक से खाद बनाकर कर 4000 हजार पौधे लगाने का काम किया जा रहा हैं जिससे कोविड स्मृति वन नाम दिया गया है.आखिर राख से खाद बनाने का काम कैसे किया जा रहा देखिए ईटीवी भारत की यह स्पेशल रिपोर्ट.
कोरोना के दौरान 3 माह में भदभदा विश्राम घाट में करीब 7000 शवों का अंतिम संस्कार किया गया था. इस दौरान करीब 25 डंपर राख बची हुई थी. जिसको नर्मदा नदी में प्रावाहित करने जा रहे थे लेकिन बड़ी मात्रा में होने के चलते साथ ही नदी प्रदूषित होने का डर विश्राम घाट प्रबंधन को सता रहा था .ऐसे में प्रबंधन ने इतनी बड़ी तादात में राख को पर्यावरण के लिए उपयोग करना ठीक समझा. उद्यानिकी विभाग और एक्सपर्ट से विचार-विमर्श कर पौधारोपण में उपयोग करने का उपाय ढूंढा गया.जानकारों का कहना है कि मृतकों की राख में फास्फोरस की मात्रा बहुत अधिक होती है. जो कि पौधों को बढ़ने में लाभदायक होती है. ऐसे में 25 डंपर राख का उपयोग कर भदभदा विश्राम घाट में ही कोविड स्मृति वन बनाने की योजना बनाई है. वही करीब 500 मृतकों के कलश को नर्मदा मे विसर्जित किया गया.
विशेषज्ञों ने तैयार की खाद
कोरोना में अपनी जान गवा चुके मृतकों को की राख का इससे अच्छा सदुपयोग क्या हो सकता है. जिसमें राख को खाद के रूप में बनाकर पर्यावरण बचाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके लिए विशेषज्ञों को बुलाकर राख, मिट्टी और भूसे सहित मृतकों की बची हुई लकड़ी का बुरादा, गोबर की खाद को मिलाकर विशेष पदार्थ बनाया गया है. इसमें करीब 100 ड्रम केमिकल मिलाया गया है जिससे 1 साल के अंदर एक घना जंगल तैयार होगा. जिसमें करीब 4000 पौधे पेड़ बन कर उभरेंगे. इसके लिए उद्यानिकी विभाग से विशेष रूप से विशेषज्ञों की मदद ली गई है.