भोपाल।मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणामों ने जनता से लेकर नेताओं तक को चौंकाया है. मोदी मैजिक और शिवराज की लाड़ली बहना योजना की ऐसी लहर दौड़ी कि प्रदेश में बीजेपी को बहुमत की सरकार मिली. ऐसी प्रचंड जीत के बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था. कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं को इस चुनाव में मुंह की खानी पड़ी. तो वहीं बीजेपी के भी कई दिग्गज नेताओं को करारी हार मिली. बहरहाल सबसे बड़ा सवाल यह है कि जहां प्रदेश में कांग्रेस को इतनी बुरी हार मिली, ऐसी मोदी-शिवराज लहर में भी बीजेपी कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा को नहीं भेद पाई. कहीं इसकी वजह बागेश्वर सरकार तो नहीं?
एमपी चुनाव में चर्चाओं में बागेश्वर सरकार की कथा: दरअसल, बागेश्वर सरकार के पंडित धीरेंद्र शास्त्री का जिक्र इसलिए हो रहा है, क्योंकि एमपी के चुनाव में धीरेंद्र शास्त्री और पंडित प्रदीप मिश्रा सबसे ज्यादा चर्चाओं में थे. बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं ने एक के बाद एक इन दोनों कथावाचकों की कथा अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में कराई थी. इन कथाओं के जरिए नेता जनता को साधने की कोशिश कर रहे थे, क्योंकि जनता के बीच पहुंचने का यह सबसे आसान तरीका था. बीजेपी के नेताओं की तरह कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने भी छिंदवाड़ा में पंडित धीरेंद्र शास्त्री की 3 दिवसीय और प्रदीप मिश्रा की 5 दिवसीय कथा कराई थी.
कथा कराने पर बीजेपी और कांग्रेस नेताओं ने घेरा: यह कथा काफी चर्चाओं और विवादों में रही थी. बागेश्वर सरकार की कथा कराने पर बीजेपी ने कांग्रेस पर चुनावी भक्त होने का आरोप लगाया था. कमलनाथ के हिंदू होने पर सवाल खड़े होने लगे थे. इसके अलावा कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णन ने भी अपनी ही पार्टी पर सवाल खड़े करते हुए निशाना साधा था. कृष्णन ने कहा था कि मुसलमानों के ऊपर “बुलडोज़र” चढ़ाने और RSS का एजेंडा हिंदू राष्ट्र की खुल्लमखुल्ला वकालत कर के “संविधान” की धज्जियां उड़ाने वाले “भाजपा” के स्टार प्रचारक की आरती उतारना कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को शोभा नहीं देता. आज गांधी की आत्मा रो रही होगी और तड़प रहे होंगे पंडित नेहरू और भगत सिंह, लेकिन सैक्यूलरिज्म के ध्वज वाहक सब खामोश हैं.