भोपाल।2 और 3 दिसंबर की उस काली रात भोपाल की यूनियन कार्बाइड से निकली गैस ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया, इस गैस कांड (Bhopal Gas Tragedy) में लाखों लोग गंभीर बीमारी से पीड़ित हो गए. लेकिन आज भी इन गैस पीड़ित बस्तियों में पहुंचने पर ऐसा लगता है कि मानो यह कल की ही बात हो, गैस कांड के 38 साल बाद भी यहां की आबादी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. दरअसल यूनियन कार्बाईड में फैला करीब 346 टन जहरीला कचरा नष्ट नहीं हो पाया, जिस कारण यहा कि 20 नई बस्तियों में भूजल के दूषित होने का खतरा बरकरार है. इस पानी को यहां के रहवासी पीने को भी मजबूर हैं, जिस कारण उनको कई गंभीर बीमारियों ने घेर रखा है.
जहरीला पानी पीने को मजबूर रहवासी:सुल्ताना बी बताती हैं कि, उनके घर में नर्मदा का पानी तो आता है, लेकिन कई बार पानी नहीं आने से आस-पास लगी बोरिंग या हैंडपंप से पानी उपयोग करती हैं. इस वजह से जहरीला रसायन युक्त पानी पीने को वह मजबूर हैं, इससे उन्हें कई गंभीर बीमारियों ने घेर लिया है. उनके शरीर में खुजली होती है और त्वचा पर कई तरह के दाग उभर आए हैं.
Bhopal Gas Tragedy जख्म अभी भरे नहीं! 38 साल 38 सवाल, कौन देगा जबाव
सरकार के दावे फेल:इस बस्ती में पहुंचने के बाद यह कहानी हर घर की नजर आती है. रशीदा बताती हैं कि, उनके तीन बच्चे हैं, जिसमें से दो बच्चे जब पैदा हुए तब शुरू से ही उन्हें कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हुई. इसमें मानसिक रूप से लेकर शारीरिक अक्षमता में शामिल हैं, उनका कहना है कि यह आज भी इस दूषित पानी को पीने के लिए मजबूर हैं. एक ओर सरकार बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन दूसरी ओर इस दूषित पानी को पीने से उन्हें कई गंभीर बीमारियों ने जकड़ रखा है.
पीड़ितों का नहीं हो रहा पंजीयन: जेपी नगर में रहने वाली मुमताज कहती हैं कि, जहरीली गैस से मिली बीमारी के एवज में महज 25 हजार रुपये का मुआवजा उन्हें मिला है. उनका आरोप है कि गैस प्रभावित क्षेत्रों के निवासियों को जहरीला और दूषित पानी पीने को मिल रहा है. यही कारण है कि गुर्दे, फेफड़े, दिल, आंखों की बीमारी और कैंसर के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. गैस पीड़ितों की मौत हो रही है, मगर राहत देने के लिए उनका पंजीयन नहीं किया जा रहा है.