बड़वानी।देशभर को अपने चपेट में ले रही कोरोना महामारी से जूझ रहे मरीज जहां अस्पतालों के आइसोलेशन वार्डों में अव्यवस्थाओं के बीच कोरोना से जंग जीत रहे हैं, वहीं समाज में कोरोना महामारी के प्रति जागरूकता की कमी होने के चलते अपने ही घर लौटने पर समाज के बदले व्यवहार से काफी असहज महसूस करने लगे हैं. कोरोना महामारी के प्रति आज भी लोगों को कई भ्रांतियां हैं, जिस वजह न सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों में बल्कि शहरी इलाकों में पढ़े-लिखे लोग भी अच्छे से व्यवहार नहीं कर रहे हैं. हालांकि, बहुत सारे मरीजों के साथ अच्छा व्यवहार भी किया गया है.
कोविड-19 की चपेट से बड़वानी जिला भी अछूता नहीं है, महाराष्ट्र की सीमा से लगे होने के चलते यहां भी कोरोना वायरस ने तेजी से पांव पसारे हैं. प्रदेश के ठेठ पिछड़े और आदिवासी बहुता वाले जिले में कोरोना संक्रमितों को लेकर लोगों का नजरिया काफी अलग है. इतना ही नही कोरोना संक्रमितों की मानें तो बरसो से जिले में जमे डॉक्टर भी इलाज करने की बजाए दूरी बना रहे हैं. ऐसे में मरीजो के सामने केवल सकारात्मक ऊर्जा के साथ कोरोना के इलाज के दौरान प्रोटोकॉल का ही बड़ा महत्व है.
डॉक्टर भी इलाज करने से कतरा रहे
शहर के व्यवसायी दीपक जोशी ने बताया कि वो कोरोना पॉजिटिव हुए और उनके साथ माता-पिता सहित परिवार के 8 लोग भी कोरोना वायरस संक्रमण का शिकार हुए. जोशी के कोरोना पॉजिटिव आने के बाद का अनुभव काफी कड़वा और प्रशासनिक उदासीनता के खिलाफ रहा.
उनका कहना है कि अस्पताल में भर्ती करने के बाद वहां की अव्यवस्थाओ में काफी लापरवाही देखी गई, जबकि इस बीमारी के दौर में डॉक्टरों की अहम भूमिका रही है उसके बावजूद डॉक्टर इलाज करने में कतराते नजर आए. ऐसा व्यवहार देखते हुए डॉक्टरों के भरोसे रहने की बजाए उन्होंने खुद परिजनों का हौसला बढ़ाते हुए क्वारेंटाइन होकर दिन बिताए. वहीं अस्पताल की व्यवस्था से नाखुश होकर परिजनों को इंदौर रेफर करवाया.
इसी तरह स्थानीय हेमंत शर्मा का भी कोरोना पॉजिटिव होने के बाद काफी बुरा अनुभव रहा. उनका कहना है कि लोगों को बीमारी से लड़ना है न की बीमार से दूरी बनाना है. अस्पताल में क्वारेंटाइन के दौरान सीनियर डॉक्टरों की नदारदगी बड़ी खलने वाली रही. पैरामेडिकल स्टॉफ और आयुष डाक्टरों की हौसलाअफजाई और सेवाभाव के कारण लोग जल्दी ठीक हो रहे हैं.