बालाघाट(Balaghat)।बेटियों को पराया धन कहा जाता है लेकिन जब यही बेटिया परिवार का हाथ बंटाने के लिए धन कमाती है तो सर फक्र से ऊंचा हो उठता है. बालाघाट की रहने वाली एक एक ऐसी बेटी दूसरी लड़कियों के लिए अब मिसाल बन चुकी है. पूनम मेश्राम ने लॉकडाउन के दौरान ठप हो चुके पिता के ऑटो चलाने के धंधे को फिर से पटरी पर लाने के लिए खुद पिता का ऑटो चलाने का फैसला लिया. पूनम ऑटो चलाने में माहिर है और उनकी इस ऑटो की सवारी में सिर्फ महिलाएं ही नहीं बल्कि परुष भी बैठते है.
मिसाल बनी बालाघाट की बेटी ऑटो चलाकर पिता का सहारा बनती बालाघाट की यह बेटी
जिले से तकरीबन 15 किमी दूर ग्राम हट्टा की निवासी पूनम मेश्राम ऑटो चलाकर अपने पिता का हाथ बंटा रही है. पूनम ने बताया कि लॉकडाउन होने के कारण घर की माली हालत काफी खराब हो गई थी और कमाने वाले सिर्फ पिता ही थे. जिसके चलते उसने अपने पिता का हाथ बटाया. जिससे कि घर की माली हालत ठीक हो सके और पिता का बोझ भी कम हो सके. ऑटो चलाने के साथ साथ वह पढ़ाई भी करती है. रोज वह ऑटो में सवारी लेकर लिंगा से बालाघाट और हट्टा जाती है.
पूनम फराटे से चलाती है ऑटो
18 साल की पूनम मेश्राम बालाघाट जिला मुख्यालय से लगभग 08 किलोमीटर दूर बसे ग्राम लिंगा की रहने वाली है. पूनम के पिता बालाघाट में ऑटो चलाने का काम करते है. पूनम लिंगा से हट्टा के बीच आटो चलाती है. पूनम की 5 बहनें है. परिवार के गुजारे के लिए वह भी पिता का हाथ बंटाने लगी है. पूनम ने चर्चा के दौरान बताया कि वह कक्षा 12 वी तक की पढ़ाई कर चुकी है और कम्प्यूटर में टेली का काम भी सीख रही है. वह हर दिन लिंगा से हट्टा तक अपने ऑटो में सवारी बैठाकर ले जाती है .हट्टा से वापस सवारी लेकर लिंगा आती है. जरूरी होने पर वह ऑटो लेकर बालाघाट तक भी आती है.
पूनम के इस काम में परिवार ने दिया साथ
पूनम ने बताया कि उसके ऑटो में केवल महिलाएं ही नहीं बल्कि लड़के और पुरूष भी सफर तय करते है. लेकिन अब तक उसके साथ किसी ने भी गलत व्यवहार नहीं किया है.बल्कि सभी ने उसे सराहा है. बेटियां पिता का दर्द और तकलीफ बेटों की तुलना में ज्यादा महसूस करती है और उसे दूर करने के लिए सदैव तत्पर रहती हैं. पूनम भी अपने पिता की समस्या को अच्छी तरह से समझने लगी है और उसे पता चल गया है कि दो पैसे कमाने के लिए कितना परिश्रम करना पड़ता है. परिवार का खर्च चलाने के लिए पूनम भी अपने पिता का हाथ बंटाती है और वह अपने पिता की तरह ऑटो चलाकर सवारी ढोने का काम करती है.पूनम कहती है ऑटो चलाना उनके पिता ने ही उन्हें सिखाया है.
कहां गए 5721 नौनिहाल? इनमें भी बच्चियों की तादाद चार हजार के पार, कांग्रेस को शक- लीपा पोती कर रही है सरकार
बालाघाट जिले की पहली महिला ऑटो चालक
एक शौक के तौर सम्पन्न घरों की महिलाओं और युवतियों को कार-जीप चलाते आसानी से देखा जा सकता है. लेकिन एक युवती को परिवार की गुजर-बसर के लिए दो पैसे कमाने के लिए आटो चलाकर सवारी ढोने का संघर्ष करते देखना प्रेरणादायक है. पूनम को पूरी कुशलता के साथ ऑटो चलाते देखना हैरान तो करता ही है साथ ही उसके जज्बे को सलाम को करता है. पूनम एक तरह से बालाघाट जिले की पहली महिला ऑटो चालक है. जो अपने ऑटो से सवारी ढोने का काम करती है. पूनम कहती है उन्हे ऑटो चलाने में कोई परेशानी नहीं होती अगर ऑटो खराब भी होता है तो ऑटो संचालक के सदस्य ही ऑटो आकर सुधार देते है.
प्रेरणा है पूनम
पूनम के पिता का कहना वो पार्टटाइम ही ऑटो चलाने का काम करती है. पढ़ाई के साथ पूनम पांच बहनों के खर्च का भी वहन कर रही है. पूनम के हाथ बंटाने से आर्थिक तौर पर काफी मदद मिल रही है. बालाघाट लिंगा की युवा बालिका पूनम मेश्राम युवाओं के लिए एक आदर्श है. उसकी लगन और मेहनत दूसरी लड़कियों को भी चुल्हे चौके से बाहर निकलकर आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देती है. पूनम का परिश्रम संदेश देता है कि लड़कियां लड़कों से कम नहीं है.