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'सांसें' लेकर आरटीओ पर खड़ा रहा वाहन, अस्पताल में घूमते रहे तीमारदार

आगर में ऑक्सीजन की किल्लत से पूरे देश भर में अस्पताल जूझ रहे हैं. वहीं आगर मालवा जिले में ऑक्सीजन की किल्लत अब सस्पेंस मोड़ में चली गई है. दिखाने के लिए यहां प्राण वायु की कोई कमी नहीं है. वहीं वास्तविक स्थिति यह है कि कोरोना के चलते लोग रोज मर रहे हैं.

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Published : Apr 27, 2021, 12:09 AM IST

ऑक्सीजन
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आगर।ऑक्सीजन की किल्लत से पूरे देश भर में अस्पताल जूझ रहे हैं. वहीं आगर मालवा जिले में ऑक्सीजन की किल्लत अब सस्पेंस मोड़ में चली गई है. दिखाने के लिए यहां प्राण वायु की कोई कमी नहीं है. वहीं वास्तविक स्थिति यह है कि कोरोना के चलते लोग रोज मर रहे हैं. रविवार की सुबह से जिला अस्पताल में लोग ऑक्सीजन सिलेंडर लेने के लिए एक टोकन नुमा पर्ची लेकर घूमते दिखाई दिए जब इनसे पूछा तो बताया कि घंटों से यहां ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए भटक रहे हैं. इस मामले में अधिकारीगण से बात की तो बताया कि ऑक्सीजन सिलेंडर जिला परिवहन कार्यालय से आ रहे हैं. वही जानकारी लेने पर ईटीवी भारत की टीम जिला परिवहन कार्यालय पहुंची तो देखा कि सिलेंडर से भरी गाड़ी खड़ी है. वहां मौजूद अधिकारी कुर्सी पर नींद निकाल रहे थे. वहीं चालक से पूछा तो उसने बताया कि वह दो-ढाई घंटे से यहां खड़े होकर वरिष्ठ अधिकारी के आदेश का इंतजार कर रहे हैं.

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आरटीओ ऑफिस पंहुचे एसडीएम


जब आरटीओ आफिस में तैनात पटवारी से बात की गई तो उन्होंने बताया कि जब तक वरिष्ठ अधिकारी नही बोलेंगें तब यह वाहन यहां से रवाना नहीं कर सकते हैं. यहां मौजूद एनएसयूआई के राष्ट्रीय सचिव ने वाहन अस्पताल भेजने को लेकर अधिकारियों से मिन्नत की लेकिन तैनात अधिकारी वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश का हवाला देते रहे. ऐसे में मीडिया के वाहन होने की जानकारी लगते ही एसडीएम राजेंद्र रघुवंशी वहां पहुंचे और सारी व्यवस्था ऑक्सीजन के अपव्यय को रोकने के लिए बतायी. उन्होंने कहा कि यहां बड़े सिलेंडर से छोटे सिलेंडर में ऑक्सीजन डालकर अस्पताल भेजे जाते हैं. जब अस्पताल में जरूरत होती है तो ही यहां से वाहन भेजते हैं. जब अधिकारी को ईटीवी भारत द्वारा अस्पताल की स्थिति से अवगत कराया गया. तब कहीं जाकर सिलेंडर से भरी गाड़ी को आरटीओ ऑफिस से जिला अस्पताल के लिए रवाना किया.

सिलेंडर अस्पताल पंहुचते ही लेने के लिए दौड़े परिजन

यहां जिला चिकित्सालय में ऑक्सीजन की गाड़ी पहुंचते ही मरीजों के अटेंडर गाड़ी के पीछे दौड़ लगाने लगे और वितरण केंद्र पर पहुंचकर लाइन में खड़े हो गए. जहां बारी-बारी से टोकन लेकर उन्हें ड्यूटी कर्मचारी ने सिलेंडर दिए. यहां सिलेंडर लेने आए एक मरीज के अटेंडर ने बताया कि वार्ड में ऑक्सीजन की कमी से छह मरीजों की मौत हो गई है. हालांकि इस बात की पुष्टि किसी भी अधिकारी ने नहीं की. दरअसल मरीजों के वार्ड तक ऑक्सीजन सिलेंडर देने का काम अब तक अस्पताल प्रबंधन खुद करता आ रहा था. देशभर से आ रही ऑक्सीजन की किल्लत से मरीजों की मौत की खबरों के बाद ऑक्सीजन की आपूर्ति करने का काम अस्पताल प्रबंधन से जिला प्रशासन ने अपने हाथ में ले लिया. जिसके लिए पटवारियों को ड्यूटी पर लगाया गया है, जो डॉक्टर की पर्ची पर सिलेंडर उपलब्ध कराते हैं.


आठ किमी दूर की जा रही रिफिलिंग

जिला प्रशासन ने क्राइसिस को देखते हुए एक जबरदस्त प्लान बनाया, जो शायद मरीजों की सांसों के साथ साफ तौर पर खिलावाड़ करता दिखाई दे रहा है. जिला अस्पताल से आठ किलोमीटर दूर जिला परिवहन कार्यालय में बाहर से रिफिल कर मंगवाए गए बड़े ऑक्सीजन सिलेंडरों को उतार लिया जाता है. इसके बाद इन बड़े सिलेंडरों से यहां छोटे सिलेंडरों को रिफिल किया जा रहा है. अब सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों ? देखते ही देखते इसका जवाब भी सामने आया. मरीज के एक अटेंडर को हमने कंधे पर सिलेंडर उठाकर कोरोना वार्ड में जाता देखा लेकिन थोड़ी देर बाद ही वह सिलेंडर लेकर बाहर आ गया.इसका कारण पूछा तो उसने कहा कि उन्हें खाली सिलेंडर दे दिया था.

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एक अटेंडर ने आरोप लगाए कि छोटे सिलेंडर में बहुत कम गैस निकल रही है. महज एक से डेढ़ घंटे में सिलेंडर खत्म हो रहे हैं. वहीं गत दिनों ऑक्सीजन की कमी एक युवक की मौत के बाद परिजन रोते बिलखते हुए खाली सिलेंडर लगाने का आरोप लगा रहे थे. इससे साफ होता है कि काल्पनिक पूर्ति दिखाने के लिए जिला परिवहन कार्यालय से बार-बार जिला अस्पताल में छोटे सिलेंडरों की खेप तो आ रही है लेकिन इन सिलेंडरों में गैस कितनी है यह तो जिला परिवहन कार्यालय में रिफिल करने वाले ही जाने.

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