आगर। जिला मुख्यालय से महज14 किमी दूर सालरी गांव के जालमसिंह पर्यावरण और पशु प्रेमी है. जालम सिंह ने गांव में एक घोषणा की है, कि उनके मरने के बाद मृत्युभोज न किया जाए. जिसकी सभी ग्रामीण तारीफ कर रहे हैं.
कुप्रथा के खिलाफ जालम सिंह जालम सिंह ने कहा कि इन्होंने1968 में एक धार्मिक कार्यक्रम में मृत्युभोज प्रथा को समाप्त करने का संकल्प लिया था. जो आज हर किसी के लिए एक मिसाल साबित हो रहा है. जालम सिंह की इस पहल का समर्थन उनका पूरा परिवार तक करता है. जालम सिंह ने कहा कि मैंने अपनी माता जी के मरने के बाद उनकी मृत्युभोज नहीं किया और जब मेरी पिताजी की मृत्यु 1994 में हुई उस समय भी मैंने मृत्युभोज नहीं किया था.
जालम सिंह खुद 40सालों से किसी के भी मृत्युभोज कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए. इतना ही नहीं वे इतने सालों से लोगों को इस कुप्रथा को बंद करने के लिए समझाते आ रहे हैं. जालमसिंह ने स्वयं का मृत्युभोज न हो इसके लिए उन्होंने जीवित रहते ही एक घोषणा पत्र बनवा लिया है. जिसमें उन्होंने उल्लेख किया है कि उनकी मृत्यु उपरांत उनका किसी प्रकार का मृत्युभोज का कार्यक्रम न किया जाएं, साथ ही समाज जनों के लिए लिखा है कि उनकी मृत्यु उपरांत उनके परिजनों पर मृत्युभोज कराने के लिए किसी प्रकार का दबाव न बनाया जाए. यह भी बता दे कि जालमसिंह ने इस कुप्रथा को बंद करने की शुरआत अपने अपने घर से है.
परिवार और रिश्तेदार की सहमति पर बोलते हुए जालम सिंह ने कहा कि मैंने इस प्रथा को बंद करने के लिए घोषणा पत्र तैयार किया है कि मेरी मृत्यु के बाद मृत्युभोज नहीं किया जाए. इसके लिए जालम सिंह समाज, अन्य संगठनों के हर जवाबदार व्यक्ति से अनुरोध करेंगे कि मृत्युभोज जैसी कुप्रथा को जड़ से मिटाने में सहयोग प्रदान करें.