इंदौर। अधिक उत्पादन और फसलों को बीमारियों से बचाने के लिए कीटनाशकों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल अब चिंता की बात हो गई है. इसलिए दुनिया के साथ साथ हमारे देश में भी जैविक खेती जोर पकड़ रही है. ऑर्गेनिक प्रॉडक्ट्स को लोग ज्यादा दाम देकर भी खरीद रहे हैं, सिर्फ ये सोचकर कि ये सौ फीसदी जैविक हैं. ज्यादातर लोग असमंजस में रहते हैं कि जैविक के नाम पर जो वो खरीद रहे हैं, वो सच में ऑर्गेनिक है भी या नहीं. ग्राहकों के इसी असमंजस पर अरबों रुपयों का कारोबार खड़ा हो गया है.
ऑर्गेनिक प्रोडक्ट, क्या असली-क्या नकली ?
देश में जैविक उत्पादों के नाम पर अरबों का बिजनस चल रहा है. कुछ असली और कुछ नकली. ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स दूसरे उत्पादों की तुलना में तीन से चार गुना महंगे बिकते हैं. यही मुनाफा धोखाधड़ी को बढ़ावा भी देता है. कई बार सामान्य उत्पाद को जैविक उत्पाद का लेबल लगाकर तीन गुना ज्यादा दाम पर बेच दिया जाता है. आम ग्राहक के पास ऐसी कोई सुविधा नहीं है, जिससे वो जान सके कि असल में जैविक उत्पाद कौन से हैं. ज्यादातर तो सिर्फ organic का लेबल देखकर ही product खरीद लेते हैं. भारतीय कृषि सेक्टर में जैविक और अजैविक को लेकर पारदर्शी व्यवस्था नहीं है. वास्तविक उत्पादों की पहचान नहीं होने के कारण ग्राहक ठगे जा रहे हैं . आमतौर पर माना जाता है कि जिस प्रोडक्ट को FSSAI का सर्टिफिकेट मिल जाता है, वो असली है. लेकिन ये सच्चाई नहीं है.
कैसे तय होता है, ये जैविक उत्पाद है ?
भारत में ऑर्गेनिक उत्पादों के सर्टिफिकेशन की व्यवस्था नेशनल ऑर्गेनिक प्रोग्राम और नेशनल ऑर्गेनिक प्रोडक्ट ऑफ प्रोग्राम के तहत चिह्नित की गई है. करीब 32 एजेंसी किसानों को organic product का सर्टिफिकेट देती हैं. इसके लिए सामान्य तौर पर फसल उगाने से लेकर उसकी बिक्री तक की पूरी प्रक्रिया की लगातार तीन साल तक जांच होती है. इसके बाद किसान को अपनी उपज का C1, C2 या C3 सर्टिफिकेट मिलता है. इसके अलावा USDA, ऑर्गेनिक, जैविक भारत, COPLIENT रिसर्च NON GMO VERIFIED और RSOCA जैसे सर्टिफिकेशन को भी उत्पाद के जैविक होने का आधार माना जाता है.