नई दिल्ली।सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों द्वारा एक ही दिन में दोष सिद्धि और सजा का आदेश पारित करने की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त करते हुए इसे परेशान करने वाला बताया है. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि आपराधिक मुकदमे जिसमें हत्या तथा बलात्कार जैसे अपराध शामिल हों उनमें अभियुक्त को सजा की मात्रा पर बहस करने का मौका दिये बिना फैसले नहीं सुनाने चाहिए.
मौत की सजा को चुनौती देने वाली अपील को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था
न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव, बीआर गवई और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि एक आरोपी को सजा की मात्रा पर बहस करने के लिए पर्याप्त समय और अवसर दिया जाना चाहिए, विशेष रूप से मौत की सजा. सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में मध्य प्रदेश में एक व्यक्ति की मौत की सजा को 30 साल की जेल में बदल दिया. ये व्यक्ति 11 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार और हत्या का दोषी था.
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला भगवानी द्वारा दायर एक अपील पर आया, जिसकी निचली अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा को चुनौती देने वाली अपील को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था.
अपीलकर्ता को अपना बचाव करने का उचित अवसर नहीं दिया गया
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस केस में सजा की मात्रा तय करने के लिए निष्पक्ष सुनवाई का उल्लंघन था. यह न्याय का उपहास है क्योंकि अपीलकर्ता को अपना बचाव करने का उचित अवसर नहीं दिया गया था. यह एक उत्कृष्ट मामला है जो बलात्कार और हत्या से जुड़े आपराधिक मामलों का न्यायनिर्णयन करने वाली निचली अदालतों की अशांत प्रवृत्ति को दर्शाता है. यह मालूम होना चाहिए कि एक आरोपी निष्पक्ष सुनवाई का हकदार है जिसकी गारंटी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दी गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने दोषसिद्धि के आदेश और सजा के एक ही दिन में पारित होने के संबंध में का कि- "धारा 235 (2) सीआरपीसी का उद्देश्य यह है कि आरोपी को उस पर लगाई जाने वाली सजा के खिलाफ अभ्यावेदन देने का अवसर दिया जाना चाहिए"
निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने सुधार की संभावना पर विचार नहीं किया
न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि दोषियों को प्रभावी अवसर प्रदान करने के लिए दोषसिद्धि और सजा के लिए दो भागों में सुनवाई जरूरी है. अदालत ने कहा, "मौत की सजा के सवाल पर आरोपी को निचली अदालत द्वारा प्रासंगिक सामग्री पेश करने का पर्याप्त अवसर मुहैया कराया जाएगा". अदालत ने कहा कि मौत की सजा सुनाते समय निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने सज़ा को कम करने और सुधार की संभावना पर विचार नहीं किया था. इसके अलावा अपीलकर्ता की उम्र अपराध करने की तारीख को 25 साल थी और वह अनुसूचित जनजाति समुदाय से है, जो शारीरिक श्रम करके अपनी आजीविका चला रहा था.
पीठ ने कहा, "अपीलकर्ता का अपराध करने से पहले कोई आपराधिक इतिहास नहीं था जिसके लिए उसे दोषी ठहराया गया है. जेल में उसके आचरण के खिलाफ कुछ भी प्रतिकूल नहीं है. इसलिए, मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने की आवश्यकता है."
(SC commutes rape convicts death sentence) (2017 MP rape case)(SC News of MP)