भोपाल। गैस त्रासदी के 36 साल बाद, एक बार फिर झीलों की नगरी में लाशों का ढेर पड़ा है. कोरोना कर्फ्यू के सन्नाटों के बीच सैकड़ों चींख-पुकारें ऐसे हैं. जिसे सुनने की नहीं, महसूस करने की जरुरत है. किसी का बेटा तो किसी का पिता और न जाने कौन-कौन, एक झटके में कई जिंदगियां उजड़ गई. हर दिन सैकड़ों कहानियां, इन कहानियों के बीच लाशों की एक और कहानी है. जिसे देखकर आपकी रूह कांप जाएगी. हम बाद कर रहे हैं मध्य प्रदेश के श्मशान घाट की. जहां दिन हो या रात चिताएं सुलगती रहती है.
- इंदौर का मुक्तिधाम
इंदौर शहर के श्मशान घाट पर भी यही हाल है, एक के बाद एक लाशें आ रही है, यहां तक की लोगों को लाइन लगानी पड़ रही है. लकड़ी का इंतजाम कम होने से अब उपले से शव का अंतिम संस्कार किया जा रहा है. यहां के मुक्तिधामों में दाह संस्कार करने में समस्या आ रही है. इस तरह की तस्वीरें रोजाना सामने आ रही है. सयाजी मुक्तिधाम में भी ऐसे ही कुछ दृश्य देखने को मिले, जहां पर एक ही दिन में कई लाश पहुंचने के बाद श्मशान घाट में दाह संस्कार करने के लिए जगह नहीं मिली. इसके बाद वहां पर विभिन्न तरह की व्यवस्था कर अंतिम संस्कार किया गया. आमतौर पर सामान्य दिनों में श्मशान में तीन या चार बॉडी पहुंचती है, लेकिन जब से कोरोना संक्रमण ने पैर पसारना शुरू किया है, तब से दाह संस्कार की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है. प्रत्येक श्मशान घाट में 10 से 15 बॉडी पहुंच रही है.
- श्मशान घाट पड़ रहे कम
शहर की आबादी तकरीबन 30 लाख के आसपास है. आबादी को देखते हुए विभिन्न क्षेत्रों में मुक्तिधामों का निर्माण नगर निगम ने करवाया है. पश्चिम क्षेत्र में पंचकुइया मुक्तिधाम मौजूद है, तो वहीं पूर्वी क्षेत्र में सयाजी मालवा मिल और तिलक नगर मुक्तिधाम मौजूद है. इन मुक्तिधामों की बात करें, तो सामान्य दिनों में यहां पर काफी कम संख्या में दाह संस्कार होते थे, जिसके कारण यहां पर आसानी से दाह का अंतिम संस्कार कर दिया जाता था, लेकिन जिस तरह से कोरोना संक्रमण अपने पैर पसार रहा है. उसके बाद एकदम से इन मुक्तिधाम में शवों के आने का ग्राफ बढ़ गया है. इसके कारण इन मुक्तिधाम में जगह की कमी भी देखने को मिल रही है. एक साथ कई शव प्रबंधक को जलाने भी पड़ रहे हैं. मुक्तिधाम प्रबंधक ने जो कुर्सियां परिजनों के बैठने के लिए लगा रखी थी, उन्हें हटाकर वहां पर ही दाह संस्कार करने की व्यवस्था कर दी गई है.
- भोपाल के श्मशान घाट में अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं
राजधानी भोपाल में कोरोना महामारी के चलते मौत के आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं. यही कारण है कि श्मशान घाटों पर शव लाने के लिए जगह कम पड़ती जा रही है. भदभदा श्मशान घाट पर रोज 30 से ज्यादा शव अंतिम संस्कार के लिए आते हैं. ऐसे में इलेक्ट्रिक शव गृह के पास पड़े सपाट मैदान में शवों का अंतिम संस्कार किया गया जाता है. हालत ये है कि अंतिम संस्कार के लिए अब विश्राम गृह में जगह तक नहीं बची है.
- कम पड़ी चिता जलाने के लिए जगह
भदभदा विश्राम गृह के प्रबंधक अजीत चौधरी और सचिव ममता शर्मा का कहना है, कि वे दिन-रात यहां की व्यवस्था में लगे हैं. पहले लकड़ी की कमी थी, अब उसे दुरुस्त कर लिया गया है. निजी वेंडरो से लकड़ियां मंगाई जा रही हैं. इलेक्ट्रिक शवदाह गृह भी शुरू कर दिया है. इसके साथ ही विकल्प के तौर पर बुधवार को शवों की संख्या अधिक होने के कारण समतल स्थान पर अंतिम संस्कार किया गया था. आज भी अमूमन स्थिति वही है. सुबह से अभी तक 24 शवों का अंतिम संस्कार किया जा चुका है.
- जबलपुर में श्मशान घाट पर लगी लाइन
जबलपुर के चौहानी मुक्तिधाम जिसे कोरोना वायरस की वजह से मरने वालों के अंतिम संस्कार के लिए आरक्षित किया गया है. वहां शनिवार के दिन 17 लोगों का अंतिम संस्कार किया गया.
- मरघट में अंतिम संस्कार की जगह नहीं
इस श्मशान घाट में एक साथ 8 लोगों का अंतिम संस्कार किया जा सकता है, लेकिन लगातार कोरोना वायरस की वजह से मरने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है. शुक्रवार को भी यहां पर 12 लोगों का अंतिम संस्कार किया गया. शनिवार को फिर 17 लोगों का अंतिम संस्कार श्मशान घाट में किया गया. इसलिए शेड में जगह नहीं बची और बरामदे में चिता जलाकर अंतिम संस्कार किया जा रहा है.
- मोक्ष संस्था और नगर निगम की टीम