भोपाल। कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन के चलते फूलों की खेती करने वाले किसानों की कमर टूट गई है, रोजाना 2 से 3 हजार तक कमाने वाले किसान मौजूदा स्थिति में एक रुपए भी नहीं कमा पा रहे. क्योंकि लॉकडाउन के कारण जहां शादी विवाह और दूसरे समारोहों पर रोक लग गई है. वहीं नवरात्रि और हनुमान जयंती जैसे त्यौहार भी लॉकडाउन की अवधि में गुजर गए हैं. इसलिए फूलों का व्यवसाय पूरी तरह ठप पड़ गया.
लॉक डाउन से ठप पड़ गया फूलों का व्यवसाय हालात ये है कि खेतों में फूलों की फसल खड़ी हुई है और किसान उसको खुद तोड़कर फेंकने के लिए मजबूर है. क्योंकि पौधे में फूल लगा होने के कारण पौधे का भी नुकसान होता है. भोपाल में ही करीब 300 परिवार फूलों की खेती करके अपना जीवन यापन करते हैं. लेकिन मौजूदा स्थिति में किसान अच्छी फसल होने के बावजूद भी फूलों का व्यवसाय नहीं कर पा रहे हैं. एक तरफ पिछले साल भारी बारिश होने के कारण किसानों को काफी नुकसान हुआ था. जैसे तैसे शादी के सीजन और धार्मिक त्योहारों में उनके नुकसान की भरपाई होती, तो लॉक डाउन ने उनके व्यवसाय की कमर तोड़कर रख दी है.
लॉकडाउन में फूलों का धंधा भी डाउन बड़े पैमाने पर होती है फूलों की खेती
भोपाल के इस्लामनगर, ईटखेड़ी, गंज और रातीबड़ इलाके में कई किसान फूलों की खेती और व्यवसाय करते हैं। राजधानी भोपाल में रहने वाली माली समाज मुख्य रूप से फूलों की खेती पर निर्भर है. इस खेती के जरिए किसानों को रोजाना नगद कमाई होती है. राजधानी भोपाल में राजनीतिक और प्रशासनिक कार्यक्रमों और समारोहों में भी बड़े पैमाने पर फूलों की मांग रहती है. इसके अलावा शादी विवाह के सीजन और धार्मिक त्योहारों पर भी फूलों की मांग दोगुनी हो जाती है. ऐसी स्थिति में फूलों की खेती करने वाला किसान रोजाना अच्छी कमाई करता है और सम्मानजनक जीवन यापन करता है. लेकिन इस बार सबकुछ चौपट हो गया.
फूलों की खेती खराब होने से किसान हो रहे परेशान 300 परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट
राजधानी भोपाल में करीब 300 परिवार फूलों की खेती पर निर्भर हैं और इस स्थिति में उनका व्यवसाय पूरी तरह से ठप पड़ गया है. खेतों में किसानों की फूलों की फसल खड़ी हुई है और बेहतर उपज भी दे रही है. लेकिन फूल व्यवसाय ठप होने के कारण किसान फूलों को मार्केट में बेच नहीं पा रहे हैं. इसलिए खेतों में खड़े फूल के पौधे नष्ट हो रहे हैं. क्योंकि फूल के पौधों से अच्छी उपज लेने के लिए रोजाना फूल तोड़े जाना जरूरी है. इस स्थिति में किसानों को फूल तोड़ने के लिए ना तो मजदूर मिल रहे हैं और अगर खुद किसान फूल तोड़ भी रहा है, तो वह बाजार में उसे बेच नहीं पा रहा है.
भोपाल के ईटखेड़ी इलाके के किसान छगन माली बताते हैं कि हमारे यहां यह व्यवसाय सालों से चला आ रहा है. बचपन से ही देख रहे हैं कि हमारे यहां फूलों की खेती होती आ रही है. 5 से 7 एकड़ में फूलों की खेती होती है. मुख्य रूप से गुलाब की खेती है, जो 12 महीने चलती है. इसके अलावा दूसरी फूलों की खेती 3 से 4 महीने की रहती है. रोजाना हमारा ढाई हजार से 3 हजार तक का नुकसान हो रहा है।
कुछ यही बात राजेश माली भी बताते हैं रोजाना हम लोग करीब ढाई हजार रुपए कमा लेते थे. नवरात्रि निकल गई शादियों का सीजन निकला जा रहा है. लेकिन फूलों की कमाई नहीं हो पा रही. हालात यह हो गए हैं कि हम खुद फूल तोड़ तोड़ कर फेंक रहे हैं, मजदूर मिल नहीं रहे हैं। गुलाब को तो हम सुखा लेते हैं,तो सूखा गुलाब बिक जाता है. लेकिन उसमें मेहनत बहुत ज्यादा लगती है. पहले उसे तोड़ना पड़ता है, पंखुड़ियां अलग करते हैं. 12 किलो फूलों से 1 किलो सूखा गुलाब बनता है, जो मार्केट में बिक जाता है. जहां तक साल भर के नुकसान की बात करें तो बारिश से लेकर अभी तक डेढ़ से दो लाख का नुकसान हो गया है. पिछले साल ज्यादा बारिश के कारण नुकसान हो गया था। इसके बाद हम कुछ संभले थे, लेकिन लॉक डाउन के कारण नुकसान हो गया है.