भोपाल। मध्यप्रदेश में एकात्म मानववाद की अवधारणा के मद्देनजर सामान्य गरीबों को आरक्षण पर विचार किया जा रहा है. मुख्यमंत्री भी वर्गभेद से उठकर अपनी योजनाओं का क्रियान्वयन कर रहे हैं. ये कहना है कि राज्य सामान्य निर्धन वर्ग आयोग के चेयरमैन शिवकुमार चौबे का ( Face To Face Shiv kumar Choubey). ईटीवी भारत के स्टेट ब्यूरो चीफ विनोद तिवारी के साथ खास बातचीत में शिवकुमार चौबे ने कहा कि मध्य प्रदेश में वर्गभेद नहीं होगा. गरीबों को न्याय मिलेगा और योग्यता का सही मूल्यांकन होगा.
जवाब- सामान्य वर्ग आयोग समाज के उन लोगों के लिए है, जो समाज में जिनकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है. अगर राजनीति से हटकर बात करें तो अनादि से लेकर आज तक इस वर्ग का बहुत बड़ा योगदान समाज के उत्थान के लिए रहा है. इसी बात के तारतम्य में मुख्यमंत्री जी ने इस आयोग की स्थापना की है. इसके माध्यम से हम जानते हैं कि मुख्यमंत्रीजी ने अपने 14-15 साल के कार्यकाल में जितनी भी योजनाएं बनाईं वो जाति और धर्म के आधार पर नहीं बनाईं.पंथ के आधार पर नहीं बनाईं, समग्र उन समुदाय के लिए बनाई जिससे मानव कल्याण हो सकता है. परंतु लगातार ये देखने में आ रहा है कि फिर भी इस वर्ग के लिए चिंता की जरूरत है. इस नाते सामान्य वर्ग आयोग का गठन किया गया है. उसकी पहली बैठक मुख्यमंत्री जी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई. मुख्यमंत्री जी से निर्देश भी प्राप्त हुए और उन निर्देशों का निष्कर्ष यह है, कि समाज में जो व्यक्ति हैं जिसका नेतृत्व करते हैंं, उनके मिले बगैर कोई भी फैसला लेना उचित नहीं समझते. इसलिए लगातार हमको प्रवास करने हैं और प्रवास के दौरान उन समाज के प्रत्येक वर्ग से मिलना है जिनके लिए हमें काम करना है.
सवाल- सामान्य रूप से ये देखा गया कि आयोगों की स्थापना तो हो जाती है सरकारों में, लेकिन वो सिर्फ रिपोर्ट देने तक सीमित रह जाते हैं या हद से हद कुछ हुआ तो स्कालरशिप यानि कि छात्रवृत्ति. इससे आगे कुछ काम नहीं हो पाता उस वर्ग का. आप इससे अलग कुछ करने वाले हैं.
जवाब-वास्तव में ये जो बात कह रहे हैं वो देखने में तो आता है, लेकिन छात्रवृत्ति और बाकी प्रश्न हैं .ये तो निरंतर आयोग के माध्यम से जा रही है, लेकिन केवल छात्रवृत्ति देने से उस वर्ग का कल्याण नहीं होने वाला है. मेरा अनुमान ये है कि आयोग के अध्यक्ष होने के नाते प्रदेश के प्रत्येक जिला मुख्यालय पर प्रवास करने वाला हूं. प्रवास के दौरान व्यक्तिगत रूप से समाज के उस वर्ग से मिलने वाला हूं, जिस वर्ग के उत्थान के लिए समाज ने बात कही है. और ऐसा मैं समझता हूं कि अनेक समस्याएं ऐसी हैं जिला मुख्यालय पर जिनका निपटारा कलेक्टर और कमिश्नर के पास लंबित है. वहां बैठकर प्रत्यक्ष बात कर अनेक समस्याओं का निदान जिला स्तर पर ही हो सकता है. इस नाते सभी विभाग के अधिकारियों को बुलाकर,कलेक्टर की अध्यक्षता में बैठक करेंगे और उनका निराकरण करेंगे. दूसरी मेरी कल्पना ये भी है कि जो जिले के कलेक्टर हैं वे इस आयोग के अध्यक्ष के नाते जिले में और उस विभाग का डिप्टी डायरेक्टर आयोग के सचिव के नाते इनकी मानीटरिंग करता रहे. जब भी हमारा प्रवास हो तो उन समस्याओं का निराकरण जिला स्तर पर कर सकें.
सवाल- एक तरह से आपने विक्रेंद्रीकरण कर दिया है. इस तरह से आयोग कि जिलों में कलेक्टर अध्यक्ष और विभाग का डिप्टी डायरेक्टर सचिव रहे तो मानिटरिंग ज्यादा बेहतर हो पाएगी. मेरा सवाल ये है कि जब अनुसूचित जाति और जनजाति का आरक्षण है,पिछड़े वर्ग का भी आरक्षण है. इनमें शासकीय नौकरियों में बैकलाग बनता है.बैकलाग की भर्तियां होतीं है तो क्या इस तरह की व्यवस्था सामान्य निर्धन वर्ग आयोग भी करेगा.
जवाब- हां,ये आपका प्रश्न ठीक है कि समग्र रूप से हमें चिंतन करना चाहिए.प्रवास के दौरान,लोगों के चर्चा के दौरान यदि इस प्रकार की बात आती है तो निश्चित रूप से उनकी भावनाओं को सरकार के सामने रखूंगा .और एक बात और भी समझता हूं चूंकि मैं भी उसी वर्ग से आता हूं तो मैं समझता हूं कि सवर्ण वर्ग का जितना भी समुदाय है, वो अपनी योग्यता के आधार पर आज भी इतने वर्षों के आरक्षण के बाद भी चाहे आईएएस हो या आईपीएस,चाहे सामाजिक क्षेत्र में देखो,चाहे व्यवसाय में देखो या फिर विद्यार्थी जीवन में किसी को भी देखो, तो वो अपनी योग्यता और मेहनत के आधार पर आज भी अग्रणी है, लेकिन उसकी सुविधाएं जो हैं जितनी मिलना चाहिए उतनी मिल जाएं,ये आयोग का पूरा प्रयास है.
सवाल-मेरी पिछले दिनों एक पूर्व राज्यपाल से बात हुई तो उन्होंने एक बात कही कि जिन लोगों को आरक्षण का लाभ मिल चुका है वो स्वेच्छा से आरक्षण का लाभ छोड़ें. अगली पीढ़ी के लिए छोड़ें या उन लोगों के लिए छोड़ें जो कि वंचित हैं. आप इस बारे में क्या सोचते हैं.
जवाब-मैं तो समझता हूं कि ये भी एक चर्चा का विषय है लेकिन वास्तव में किसी काम को करना है तो मूल तथ्यों के आधार पर और आपस में एक-दूसरे से संवाद के आधार पर इन चर्चाओं का हल होना चाहिए. समाज में अनेक एेसी चीज हैं जो राजनैतिक दृष्टि से आकलन होता है जिनका.समाज में अनेक ऐसी चीजे हैं जो जोड़-घटाने के आधार पर देखी जाती हैं, लेकिन शिवराज जी के नेतृत्व में जो कुछ चल रहा है वो मानव सेवा के कल्याण के लिए है. जैसे मैं आपको उदाहरण बताऊं कि जितनी योजनाएं पहले बनती थीं वो वर्ग के आधार पर बनती थीं. लेकिन हमने जितनी भी योजनाएं बनाईं वो समग्र मानव के कल्याण के लिए बनाईं. उदाहरण यदि दूं तो एक लंबी चर्चा हो जाएगी .लेकिन मैं ये बताता हूं कि जैसे हम कन्या विवाह करते थे तो जिस मंडप के नीचे पाणिग्रहण संस्कार होता था उसी मंडप के नीचे निकाह कबूल होता था. तीर्थयात्रा में अगर हमने लोगों को भेजा तो जाति को देखकर नहीं भेजा,धर्म को देखकर नहीं भेजा,अगर व्यक्ति की आवश्यकता है,व्यक्ति की भावना है तो उसकी भावना को पूरा करना है, तो समग्र लोगों को मिलना चाहिए. वनवासी औऱ सवर्ण का जो आजकल चल रहा है तो उनके लिए भी लाभ मिलना चाहिए. क्योंकि उनके योगदान को समाज में भुलाया नहीं जा सकता है. चाहे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी से लेकर आज तक का योगदान हो,वनवासियों का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है .लेकिन इसके पीछे कोई कारण नहीं है कि सवर्ण का कोई योगदान नहीं रहा है. इन सबमें तालमेल होते हुए जैसे एक उदाहरण बताता हूं, कि महू में डॉ भीमराव अंबेडकर जी के जन्मस्थान के पुनरोद्धार के लिए,उसकी महत्ता के लिए,उनके आदर्शों के चलने के लिए हमने उस स्थान को आगे बढ़ाया है. लेकिन ठीक उससे लगा हुआ जानापाव है. जहां भगवान परशुराम जी का जन्म हुआ है. उस स्थान के जीर्णोद्धार के लिए इतना काम किया है, कि आप कल्पना नहीं कर सकते कि मुख्यमंत्री पहली बार जाएं और 11 करोड़ रुपए मंजूर करके आएं. वहां पर जाने का रास्ता नहीं था, लेकिन अब फोरव्हीलर से लोग जा रहे हैं. तो इससे साफ सिद्ध होता है कि मुख्यमंत्री की भावना जो है समग्र समाज के लिए है. उस समाज के उत्थान के लिए काम करना चाहते हैं. आयोग की भी यही कल्पना है कि प्रवास के दौरान जो चीजें आएंगी उनको सरकारी योजनाओं में शामिल करेंगे. तेजी से काम करेंगे जिसमें सर्व वर्ग का कल्याण हो सके.
सवाल-दीन दयाल जी का एकात्म मानववाद और गांधी जी की अवधारणा, ये सबसे निचले पायदान के व्यक्ति को ऊपर लाना और समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का था. 70 साल से ऊपर हो चुके हैं, हम 75वीं साल आजादी का अमृत महोत्वस मना रहे हैं. इस व्यवस्था की कब तक जरूरत पड़ने वाली है.
जवाब-बहुत सही बात कही,गंभीरता की बात कही और चिंतन की बात कही. ये वास्तव में गांधी जी ने जो कहा वो लोगों ने पढ़ा तो लेकिन उसका मनन नहीं किया उसको धरातल पर उतारने का प्रयास नहीं किया. गांधी जी के नाम का केवल लोगों ने राजनीतिक उपयोग किया है. अगर गांधीजी की अवधारणा को ये आजादी के बाद से धरातल पर उतारते तो आज देश की ये दुर्दशा नहीं होती. दीनदयाल जी के एकात्म मानववाद का जहां तक प्रश्न है तो दीनदयाल जी ने कहा कि समाज के अंतिम व्यक्ति का भी कल्याण हो तो इस बात को लेकर भी हम कहें तो चाहे एमपी में भाजपा की सरकार हो,छत्तीसगढ़ में रही हो,राजस्थान में रही हो,अन्य प्रांतों में रही हो. केंद्र में आज नरेंद्र मोदी जी हैं और जो योजनाओं का क्रियान्वयन हो रहा है, वो एकात्म मानववाद के आधार पर वास्तव में समाज के कल्याण के लिए जितनी योजना तैयार की जा रही है.हमने दीनदयाल जी के एकात्म मानववाद को जमीन पर उतारने का प्रयास किया है .उसी का ये प्रतिफल है कि पांच,सात आठ साल में देश में अमूल चूल परिवर्तन हो रहा है. एक प्रधानमंत्री है भारत का जो अमेरिका जाता था तो दो दिन वाशिंगटन में रहता था. लेकिन इतने बड़े राष्ट्र का प्रधानमंत्री अमेरिका जाने के बाद वहां का राष्ट्रपति उससे न मिले और वो लौटकर आ जाए तो यह नरसिंहराव का अपमान नहीं था .भारत की जनता का अपमान था और आज भारत का प्रधानमंत्री वाशिंगटन जाता है तो वो इंतजार नहीं करता बल्कि वहां का राष्ट्रपति सपत्नीक उनके स्वागत के लिए आता है. फिर दूसरा ये लगता था कि हमारे प्रवासी लोग हैं जो व्यवसाय के लिए गए हैं, डाक्टरी के लिए गए हैं,इंजीनियरिंग के लिए गए हैं ,हमारे प्रधानमंत्री ने उस धरती पर अमेरिका हो,यूरोप हो,आस्ट्रेलिया हो,रूस पर जाकर ये जताया कि आप यहां केवल व्यवसाय के लिए आएं हैं .आपका रक्षक भारत का प्रधानमंत्री है,देश आपके साथ है. इस बात का अहसास कराया. ये सारी चीजें जब हम धरती पर उतारते हैं तो ये लगता है कि वास्तव में दीनदयाल जी के एकात्म मानववाद को हम जमीन पर उतारकर समाज को बताना चाहते हैं. इसलिए प्रधानमंत्री जी आज केवल भारत के प्रधानमंत्री नहीं हैं बल्कि पूरे विश्व के नेता हैं. उन्हें पूरा विश्व जानने लगा है.
सवाल-एक बात और है 10 प्रतिशत आरक्षण की बात कही गई है इस वर्ग को, 10 प्रतिशत आरक्षण कैसे इम्पलीमेंट करेंगे आप. कैसे ढांचागत रूप देंगे,कैसे फलीभूत करेंगे.