भोपाल। देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया था, लेकिन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल को आजादी दो साल बाद मिली थी. उस वक्त भोपाल के नवाब शहर को पाकिस्तान का हिस्सा बनाना चाहते थे. भोपाल के जुमेराती के एक डाकघर में ही आजादी के दिन तिरंगा फहराया गया था. यह नवाबों के जमाने का डाकघर है. इसकी डिजाइन आज भी लोगों को आकर्षित करती है. इसे अंग्रेजों ने भी डाकघर के रूप में उपयोग किया था. अभी भी यहां डाक बंगला है. (Bhopal City Post Office)
भोपाल 1947 को आजाद क्यों नहीं हुआ था:15 अगस्त 1947 को भोपाल को आजादी नहीं मिली थी. यहां पर नवाब हमीदुल्लाह का शासन था. नवाबी शासन होने के चलते ज्यादातर इमारतें और महल भोपाल स्टेट की थी. जब देश आजाद हुआ तो भोपाल रियासत ने भारत में शामिल होने का ऐलान किया. लेकिन अगले 2 साल तक भारत का तिरंगा नहीं बल्कि खुद का झंडा लहराया. 1949 को भोपाल रियासत का भारत में औपचारिक विलय हुआ. भोपाल रियासत के आखरी नवाब हमीदुल्लाह खान थे. माउंटबेटन और भारतीय नेताओं के बीच करार के बाद भारत को विभाजन और आजादी साथ मिल रही थी. तमाम रियासतों को यह विकल्प मिला था कि भारत या पाकिस्तान में से एक देश चुनें. हमीदुल्लाह खान मुस्लिम लीग के सक्रिय सदस्य थे. मोहम्मद अली जिन्ना के साथ हमीदुल्लाह की दोस्ती थी. लेकिन जब 1947 में किसी एक देश को चुनने का मामला सामने आया तब उन्होंने काश्मीर, हैदराबाद, सिक्किम जैसी रियासतों की तरह दोनों विकल्पों को नकारते हुए एक अलग रियासत की दलील दी. लेकिन जब नवाब ने देखा कि उनके दोस्त और कुछ रियासतें भारत के साथ विलय हो रही हैं तो 1947 में उन्होंने भारत के साथ विलय की सहमति दे दी. हालांकि अगले कुछ सालों तक वे अपनी कोशिशें जारी रखते रहे और उनको लगा कि भोपाल स्वतंत्र रियासत बनेगी. (Bhopal Nawab Hamidullah Khan)
नवाब का विरोध, गोलीबारी में कई आंदोलनकारी शहीद:नवाब के अलग रियासत बनाने का विरोध भोपाल में शुरू हो गया. शंकर दयाल शर्मा भाई रतन कुमार गुप्ता जैसे नेताओं के नेतृत्व में भोपाल स्टेट के लिए विलीनीकरण आंदोलन शुरू हुआ. आंदोलन लगातार आगे बढ़ रहा था तब नवाब ने इस आंदोलन को कुचलने की कोशिश की. नवाब ने शंकर दयाल शर्मा सहित अन्य नेताओं को जेल में डाल दिया. इस आंदोलन के दौरान गोलियां चलाई गई, खून खराबा भी हुआ और कई आंदोलनकारी शहीद भी हुए. (Bhopal Not independent 15 August 1947)