सरायकेला: चेहरे की झुर्रियां, सफेद बाल के पीछे स्वतंत्रता सेनानी अखौरी बालेश्वर सिन्हा आजकल घर में गुमसुम रहते हैं, लेकिन गुलाम भारत में यही अखौरी बालेश्वर सिन्हा आजादी की लड़ाई में न केवल अंग्रेजों के खिलाफ लड़े बल्कि गांव में टोली बनाकर जन जागरण भी फैलाया.
स्वतंत्रता सेनानी अखौरी बालेश्वर सिन्हा ने आजादी की ज्योति जलाई. इस दौरान अंग्रेजी पुलिस ने 1945 में बक्सर बाजार के पास इन्हें घेराबंदी कर पकड़ लिया और ये 6 माह 20 दिन तक जेल में रहे. इधर, जेल से छूटते ही ये फिर स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हो गए जिसके बाद ये दोबारा कभी नहीं पकड़े गए.
भोजपुर में हुआ जन्म
सरायकेला जिले के आदित्यपुर निवासी पूर्व स्वतंत्रता सेनानी अखौरी बालेश्वर सिन्हा का जन्म भोजपुर जिला अंतर्गत रामचुरामन गांव में हुआ. इनके बड़े भाई अखोरी रामनरेश सिन्हा आजादी के आंदोलन में काफी सक्रिय थे और बढ़-चढ़कर भाग लेते थे. यहीं से इन्हें आजादी के लड़ाई से जुड़ने का मौका मिला. यह बताते हैं कि बिहार स्थित बक्सर से 3 किलोमीटर पर स्थित उनके गांव में अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारी अक्सर आंदोलन कर रहे दोनों भाइयों को पकड़ना चाहते थे.
गलत दिशा में देश
अपने बड़े भाई के साथ मिलकर पहली बार सन 1942 के आंदोलन से जुड़े और अहम भूमिका निभाई. ये फिलहाल स्वतंत्रता सेनानी एवं उत्तराधिकारी संगठन के महामंत्री पद पर कार्यरत हैं. आजाद भारत की परिकल्पना को लेकर स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता सेनानी बालेश्वर कहते हैं कि आजाद भारत के नेता चरित्रहीन हो गए. जिनके कारण आज देश गलत रास्ते पर चल पड़ा है. यह चिंता का विषय है. इनका मानना है कि पहले के नेता और लोगों में ईमानदारी और चरित्र का जीता जागता उदाहरण देखने को मिलता था, लेकिन आज इन सभी चीजों का ह्रास हो रहा है.
स्वतंत्रता सेनानी अखौरी बालेश्वर बताते हैं कि उस वक्त महात्मा गांधी के नारे करो या मरो के आह्वान पर देश में जो उत्साह की लहर पैदा हुई वह अपने आप में एक मिसाल थी. स्वतंत्रता सेनानियों ने सोचा था कि आजादी के बाद देश में राम राज कायम हो जाएगा भारत समृद्ध, खुशहाल और भ्रष्टाचारमुक्त राष्ट्र बनेगा, लेकिन आज इन सब चीजों की जगह जातिवाद, क्षेत्रवाद और आतंकवाद ने ले ली है.