सरायकेला: हरिभंजा और खरसावां में मंगलवार को प्रभु जगन्नाथ की घोष यात्रा निकाली गयी. सरकारी निर्देशों के अनुसार कोविड-19 के कारण इस वर्ष प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा नहीं निकली. दोनों जिलों के मंदिरों में पूजा अर्चना कर सभी रश्मों को निभाया गया. खरसावां में भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के विग्रहों को रथ पर सवार कर गुंडिचा मंदिर पहुंचाने के बजाये पुरोहित ने स्वयं तीनों विग्रहों को कंधे में ले कर गुंडिचा मंदिर तक पहुंचाया. इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन किया गया.
इससे पहले मंदिर के पुजारियों ने राजवाड़ी परिसर स्थित मंदिर में पूजा अर्चना की. खरसावां में परंपरा के अनुसार खरसावां राजघराने के राजकुमार गोपाल नारायण सिंहदेव ने सड़क पर चंदन छिड़क कर और झाडू लगाकर छेरापोंहरा की रश्म को निभाया. इसी तरह हरिभंजा गांव में गांव के जमीनदार विद्या विनोद सिंहदेव ने चंदन छिड़क कर व झाडू लगा कर छेरापोंहरा की रश्म को निभाया.
मान्यता है कि छेरा पोंहरा के बाद ही रथ यात्रा निकलती है. इस दौरान भक्तों की संख्या भी कम थी. मंदिर के पूजारी व आयोजन समिति के कुछ सदस्यों ने सभी रस्म को पूरा किया. पुजारी से लेकर सभी भक्त फेस मास्क लगाये हुए थे. साथ ही सैनिटाइजर का भी उपयोग किया गया. गुंडिचा मंदिर में भी बारी-बारी से पूजा अर्चना की गयी.
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हर साल की तरह इस बार भी भगवान जगन्नाथ की ऐतिहासिक रथयात्रा निकाली गई, लेकिन कड़ी शर्तो के साथ. जगन्नाथ मंदिर में रथयात्रा के दौरान पुरी के राजा गजपति महाराज ने सोने के झाडू से सफाई करके 'छेरा-पहंरा' की रस्म अदा की. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कुछ प्रतिबंधों के साथ कोरोना वायरस महामारी के बीच वार्षिक रथ यात्रा को आयोजित करने की अनुमति दी थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक 500 से अधिक लोगों को रथ खींचने की अनुमति नहीं दी गई. वहीं झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के मौके पर रांची में जगन्नाथ मंदिर में दर्शन किए.