सरायकेला: यूं तो कोल्हान प्रमंडल का सरायकेला-खरसावां जिला अपने छऊ नृत्य कला और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए जाना जाता है. लेकिन यहां बनने वाला लड्डू भी काफी प्रसिद्ध है, जिस प्रकार छऊ नृत्य कला अपने इतिहास को संजोए है, ठीक उसी तरह सरायकेला का सुप्रसिद्ध लड्डू भी अपने रोचक इतिहास को बयां करता है.
बेसन से सेव से बनता है लड्डू
झारखंड के सरायकेला जिले का लड्डू यूं तो पूरे कोल्हान क्षेत्र में प्रसिद्ध है, लेकिन अब धीरे-धीरे अपने स्वाद का जलवा झारखंड के अलावा अन्य राज्यों में भी बिखेर रहा है. कहा जाता है कि जब भी कोई सरायकेला आता है तो यहां के लड्डू का स्वाद जरूर लेता है और यदि वह ऐसा नहीं कर पाता तो उसकी यात्रा मानो अधूरी ही रह जाती है. सरायकेला के इस लड्डू के इतिहास के बारे में जानकार बताते हैं कि सरायकेला स्टेट की स्थापना उड़ीसा राज्य में हुई थी. तब इष्ट देवी मां पाऊड़ी की पूजा में पहली बार इस लड्डू का प्रयोग हुआ था, कहां जाता है कि मोदक परिवार की एक वृद्ध महिला बेसन से सेव तैयार कर इसके लड्डू को बनाकर इष्ट देवी के लिए प्रसाद के रूप में इसे तैयार करती थी.
दूसरी जगह नहीं बन पाता ऐसा लड्डू
इसके बाद प्रसाद का यह लड्डू इतना प्रसिद्ध हुआ कि यह मंदिर के प्रसाद से बाहर निकलकर बाजार तक जा पहुंचा. जहां हर आम और खास इसके स्वाद को चखने लगे, बाजार में आने के बाद पहली बार पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले से आए कारीगरों ने बेसन का सेव तैयार करने के बाद इसे बनाया. कहावत है कि सरायकेला के पानी में एक विशेष गुण है जिसके कारण इन लड्डुओं का स्वाद बढ़ जाता है, वहीं कई अन्य स्थानों पर भी इस लड्डू को बनाने का भरसक प्रयास किया गया लेकिन वह स्वाद इसमें नहीं आ सका.