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प्रकृति के पूजारी हैं भूमिज मुंडा, राजतंत्र में होते थे गांव के प्रधान

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Published : Aug 8, 2019, 11:19 PM IST

सरायकेला में लगभग 350 भूमिज मुंडा परिवार बसते हैं. इनका मुख्य कार्य खेती है. आदिवासी और आदिम जनजाति के लोग प्रकृति के काफी करीबी होते हैं, लेकिन मुंडा एक ऐसी जनजाति है जिसे प्रकृति का रक्षक भी कहा जाता है.

प्रकृति के पूजारी होते हैं भूमिज मुंडा

सरायकेला:प्रकृति की गोद में बसे झारखंड की अपनी एक अलग पहचान है. यहां विभिन्न जाति, भाषा और धर्म के लोग रहते हैं. जिनके परिधान, बोलचाल और रहन-सहन किसी जगह पर समान हैं, तो कहीं विभिन्नताएं भी हैं. झारखंड में आदिम जनजाति के लोगों का एक अलग स्थान है. भूमिज मुंडा इन्हीं में से एक हैं.

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भूमिज मुंडा झारखंड प्रदेश की एक प्रमुख आदिवासी जनजाति है.इस जनजाति का मूल स्थान यूं तो दक्षिणी छोटानागपुर है, लेकिन उत्तरी छोटानागपुर में भी ये लोग कहीं-कहीं मिल जाते हैं. आज के समय में मुंडा जनजाति के लोग झारखंड के लगभग सभी जिले में बसे हुए हैं.

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राजतंत्र में खेती-बाड़ी था प्रमुख काम
आदिम भूमिज मुंडा राजतंत्र में काफी सक्रिय थे. उस वक्त इनका प्रमुख कार्य खेती था. इतिहास के दौर से लेकर आजतक इस जनजाति के लोग एक कुशल कामगार और मजदूर होते हैं, लेकिन वक्त और हालात के साथ मुंडा समाज के लोगों ने भी अब खेती करने के अलावा दूसरे कामों में हाथ बढ़ाना शुरू कर दिया है. कोल्हान के सरायकेला-खरसावां जिले में मुंडा और भूमिज मुंडा जनजाति के लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है. जिले के कुचाई, दरभंगा और खरसावां ग्रामीण क्षेत्रों में ये लोग आदिम जमाने से ही रहते हैं.

प्रकृति प्रेमी के रूप में जाने जाते हैं भूमिज मुंडा
आदिवासी और आदिम जनजाति के लोग प्रकृति के काफी करीबी होते हैं. भूमिज मुंडा एक ऐसी जनजाति है, जिसे प्रकृति का रक्षक भी कहा जाता है. इसकी जानकारी इनकी सभ्यता और संस्कृति से ही पता चलता है. इनके सभी धार्मिक अनुष्ठानों में सबसे पहले प्रकृति की पूजा होती है. मुंडा जनजाति के लोगों का प्रमुख प्रकृति पर्व सरहुल है. मुंडा जनजाति के लोग अपने जाहेर थान( पूजा स्थल) की रखवाली और देखरेख करते हैं. साल वृक्ष को ये लोग देवता मानते हैं. इस स्थान पर साल के बड़े - बड़े वृक्ष लगे होते हैं, जहां सरहुल के मौके पर पूरे विधि-विधान के साथ इनकी पूजा की जाती है.

प्रधानी व्यवस्था में थे शामिल
सालों पहले जब राजतंत्र हुआ करता था, तब मुंडा और भूमिज गांव में प्रधान के पद पर आसीन हुआ करते थे, लगभग सभी गांव में राजाओं द्वारा चलाए जा रहे प्रधानी व्यवस्था में भूमिज मुंडा शामिल रहते थे.

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