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विश्व आदिवासी दिवस: वक्त के साथ बदले संथाल आदिवासी, दशकों बाद भी घोर अभाव में जीवन बीता रहे

साहिबगंज के संथाल आदिवासियों की अच्छी-खासी संख्या है इसके बावजूद इन्हें सरकार की तमाम योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता. इनका पूरा जीवन प्राकृतिक संसाधनों पर पूरी सरह से निर्भर है.

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Published : Aug 7, 2019, 10:03 PM IST

साहिबगंज: झारखंड में संथाल आदिवासियों की एक अलग पहचान है. बदलते दौर में वे भी इस परिवर्तन का हिस्सा बने लेकिन आज भी बहुत से ऐसे गांव हैं जहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. कई गांवों में न तो बिजली पहुंच पाई है और न ही सड़क.

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संथाल झारखंड राज्य की एक प्रमुख अनूसूचित जनजाति है, जो मुख्य रूप से संथाल परगना प्रमंडल एवं पश्चिमी और पूर्वी सिंहभूम, हजारीबाग, रामगढ़, धनबाद और गिरीडीह जिलों में निवास करती है. इसकी कुछ आबादी बिहार राज्य के भागलपुर पूर्णिया, सहरसा तथा मुंगेर प्रमंडल में भी पायी जाती थी. संथाल जनजाति पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, मध्यप्रदेश और असम राज्यों में भी वास करती है. इस जनजाति को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के साओत क्षेत्र में लंबे अर्से तक रहने के कारण साओंतर कहा जाता था, जिसे बाद में संथाल कहा जाने लगा.

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देश के अन्य हिस्सों की तरह संथाल के इन गांवों के लोगों को भी प्रधानमंत्री आवास योजना और उज्जवला योजना का लाभ मिला. लेकिन कुछ ऐसे भी गांव हैं जहां तक सरकार अब तक नहीं पहुंच पाई है. संथाली समाज की वेशभूषा और रहन-सहन काफी साधारण है, आज भी संथाली महिलाएं लूंगी और पंछी पहनती हैं. इस समाज की महिला और पुरूष अपने शरीर पर गोदना गोदवाते हैं. इनकी अपनी एक अगल भाषा है जिसे संथाली कहा जाता है.

जिले के मांडर प्रखंड के अंबाडीहा पंचायत में आज भी महिलाएं लकड़ी से खाना पकाती हुई नजर आती हैं. ये अपने घर और आंगन को गाय के गोबर से साफ करते नजर आते हैं. जिनके पीछे इनका तर्क है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गोबर से घर को साफ करने से कई बीमारियों से मुक्ति मिलती है. ये लोग खेती के साथ-साथ गाय, बकरी और मुर्गीपालन भी करते हैं. . ये लोग जंगली लकड़ी और बांस बेचकर अपना गृहस्थ जीवन चला रहे हैं.

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इनका खान-पान भी साधारण होता है, ये ज्यादतर घरों में बना खाते हैं. पर्व त्योहार में मीठे पकवान बनाने की रिवाज तो है ही इसके साथ ही ये लोग खास मौकों पर मांसाहारी भोजन भी बनाते हैं. इस इलाके में ये समुदाय पहाड़ों पर बसने के कारण संथाल समाज में मूलभूत सुविधाओं की घोर कमी है. आफत तो तब आती है जब किसी की तबीयत खराब होने पर अस्पताल आने में उन्हें कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है.

उनकी समस्याओं पर पेयजल पदाधिकारी ने कहा कि 14वें मद से इन आदिवासी गंवों में पानी की सुविधा दी जाएगी. आशा है बहुत जल्द आकांक्षी योजना के साथ इन गांव में पानी की समुचित व्यवस्था करा दी जाएगी. इधर, उपायुक्त ने कहा कि आकांक्षी योजना के तहत बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी.

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