साहिबगंज: झारखंड में संथाल आदिवासियों की एक अलग पहचान है. बदलते दौर में वे भी इस परिवर्तन का हिस्सा बने लेकिन आज भी बहुत से ऐसे गांव हैं जहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव है. कई गांवों में न तो बिजली पहुंच पाई है और न ही सड़क.
संथाल झारखंड राज्य की एक प्रमुख अनूसूचित जनजाति है, जो मुख्य रूप से संथाल परगना प्रमंडल एवं पश्चिमी और पूर्वी सिंहभूम, हजारीबाग, रामगढ़, धनबाद और गिरीडीह जिलों में निवास करती है. इसकी कुछ आबादी बिहार राज्य के भागलपुर पूर्णिया, सहरसा तथा मुंगेर प्रमंडल में भी पायी जाती थी. संथाल जनजाति पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, मध्यप्रदेश और असम राज्यों में भी वास करती है. इस जनजाति को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के साओत क्षेत्र में लंबे अर्से तक रहने के कारण साओंतर कहा जाता था, जिसे बाद में संथाल कहा जाने लगा.
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देश के अन्य हिस्सों की तरह संथाल के इन गांवों के लोगों को भी प्रधानमंत्री आवास योजना और उज्जवला योजना का लाभ मिला. लेकिन कुछ ऐसे भी गांव हैं जहां तक सरकार अब तक नहीं पहुंच पाई है. संथाली समाज की वेशभूषा और रहन-सहन काफी साधारण है, आज भी संथाली महिलाएं लूंगी और पंछी पहनती हैं. इस समाज की महिला और पुरूष अपने शरीर पर गोदना गोदवाते हैं. इनकी अपनी एक अगल भाषा है जिसे संथाली कहा जाता है.