रांचीः इस बार भी भीषण गर्मी के बीच लोग पानी की तलाश में भटकते रहे. ऐसे में रांची नगर निगम का टैंकर सहारा जरूर बना मगर वह भी उम्मीदों से ज्यादा सहायता पहुंचाने में कामयाब नहीं हुआ. ऐसे में अब सवाल यह उठने लगा है कि सरकार ने जिस जलमीनार के निर्माण पर करोड़ों खर्च किए वो चालू क्यों नहीं हुए. यह जलमीनार एक नहीं बल्कि इसकी संख्या आधा दर्जन से अधिक है और कुछ के निर्माण कार्य जारी है.
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जलमीनार को एनओसी का इंतजारः जलापूर्ति योजना के मुताबिक राजधानी के 2 लाख 10 हजार घरों तक पानी पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया था. जुडको द्वारा पूरे शहर में इसके लिए 13 जगहों पर जलमीनार का निर्माण कराया जा रहा है. जिसमें बकरी बाजार, अमरुद बगान, पुलिस लाइन, सीपेट कैंपस, बनहोरा में 2, आईटीआई बस स्टैंड और पटेल पार्क में जलमीनार का कार्य पूर्ण हो चुका है. वहीं पांच ऐसे जलमीनार हैं, जिसके निर्माण कार्य अंतिम चरण में है. लेकिन विभाग के द्वारा एनओसी नहीं मिलने की वजह से इन जलमीनारों तक पानी पहुंचाना कठिन है. सरकार के द्वारा रांची वाटर सप्लाई स्कीम फेज वन और फेज टू के तहत 1 हजार 100 करोड़ की लागत से पूरे राजधानी क्षेत्र में पाइपलाइन बिछाई जा रही है. इस कार्य के लिए जुडको ने तीन कंपनियों को काम दिया है. मगर हालात यह है कि पाइपलाइन बिछाने में हो रही देरी के कारण जलमीनार तैयार होने के बावजूद भी इन क्षेत्रों में पानी का सप्लाई नहीं हो पा रहा है.
जलमीनार चालू नहीं होने पर राजनीतिः रांची में सप्लाई वाटर सुचारू नहीं होने पर राजनीति शुरू हो गई है. पूर्व नगर विकास मंत्री और रांची के वर्तमान भाजपा विधायक सीपी सिंह ने इसके लिए वर्तमान सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. विधायक ने कहा कि जलमीनार और पाइपलाइन देखकर लोग अपना प्यास नहीं बुझायेगा उन्हें तो पानी चाहिए. अपनी सरकार पर विपक्ष के द्वारा दोषारोपण किए जाने पर पलटवार करते हुए सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडे ने कहा है कि इसके लिए कौन दोषी है इसे समझना होगा. हमारी सरकार काम को पूर्ण करने में विश्वास रखती है ना कि पूर्ववर्ती सरकार के जैसा हाथी उड़ाने में जलमीनार को लेकर आ रही थोड़ी बहुत बाधा को जल्द ही सरकार दूर करेगी और राजधानी में लोगों को समुचित जलापूर्ति की व्यवस्था की जाएगी.
बहरहाल एनओसी नहीं मिलने की वजह से पाइपलाइन बिछाने में हो रही देरी और जलमीनार में कनेक्शन नहीं होने का खामियाजा जनता झेल रही है. ऐसे में इस साल के अंत तक यह योजना पूरी होने की संभावना कम दिख रही है.