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पहली सदी से जुड़ा है सूतियांबे गढ़ की मूर्तियों का इतिहास, खंडित प्रतिमाओं की होती है यहां पूजा

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार खंडित मूर्तियों की पूजा कभी नहीं की जाती है लेकिन रांची से महज 20 किलोमीटर दूर अवस्थित सूतियांबे गढ़ की मान्यता इससे बिल्कुल अलग है. यहां विभिन्न देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियों की ही लोग पूजा करते हैं ओर मानते हैं यहां पूजा करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी हो जाती है.

सूतियांबेगढ़ की मूर्तियां

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Published : Sep 29, 2019, 11:18 PM IST

रांची: जंगल झारखंड के सभ्यता की असली पहचान है. झारखंड के मूल निवासी आदिवासियों के लिए अलग झारखंड राज्य का निर्माण ही इसलिए किया गया था ताकि वे अपने जंगल, जमीन और अपनी सभ्यता की रक्षा कर सके. शायद इसके पीछे का कारण भी यही है कि झारखंड के ये जंगल सभ्यताओं के इतिहास खुद में छिपाए बैठे हैं. तभी तो आज भी पुरातत्व विभाग इनकी शोध में लगा है. झारखंड के इसी सभ्यता को संजोए बैठा है रांची से महज 20 किलोमीटर दूर स्थित सूतियांबे गढ़.

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सूतियांबे गढ़ में खंडित मूर्ति की होती है पूजाकहते हैं खंडित मूर्ति की कभी पूजा नहीं की जाती लेकिन सूतियांबे गढ़ में खेतों में भगवान की कुछ ऐसे मूर्तियां है जो खंडित है. इन खंडित मूर्तियों की लोग पूरी आस्था से पूजा करते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि ये खंडित मूर्ति हैं तो क्या इन्हीं मूर्तियों से जो मांगा जाए, वह मुराद पूरी हो जाती है.

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सूतियांबे गढ़ की मूर्तियों का इतिहास
यह मूर्तियां पहली सदी की बताई जाती है. वहीं इन मूर्तियों के पीछे कई शासकों की कहानी छुपी हुई है. कहते हैं कि छोटा नागपुर के पहले शासक मंद्रा मुंडा के शासनकाल में पिठोरिया उप राजधानी हुआ करती थी. मंद्रा मुंडा एक प्रतापी राजा थे और भगवान के प्रति उनकी आस्था भी अटूट थी. पिठोरिया के सूतियांबे गढ़ में सौर्य मंडल का भव्य मंदिर था जिसमें मंद्रा मुंडा पूरी श्रद्धा से पूजा किया करते थे.


मंद्रा शासक के खत्म होने के बाद खत्म हुई रौनक
पहली सदी में मंद्रा मुंडा का शासन पिठोरिया इलाके में था और बताया जाता है कि मूर्ति उसी काल की है. लेकिन साम्राज्य खत्म होने के साथ इलाके की रौनक भी खत्म होती गई और फिर आक्रमणकारियों ने मंदिर और मूर्ति को तोड़ दिया गया.

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जमीन के नीचे दबी मिली थी मूर्तियां
लोग कहते हैं कि ये मूर्तियां खेतों में जमीन के नीचे दबी मिली थी. इन्हें जमीन से निकालकर एक जगह खुले में ही स्थापित कर दिया गया. आज भी वहां कोई मंदिर नहीं है और खुले आसमान के नीचे आज भी उसी भव्यता के साथ ये मूर्तियां वहां स्थापित है. कहा जाता है कि यहां सच्चे दिल से अगर कोई भगवान की आराधना करता है तो उनकी मनोकामना जरूर पूरी होती है. यहां भगवान शिव, पार्वती, गणेश आदि देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित है.

सूतियांबे गढ़ की आकृतियों के पीछे है वैज्ञानिक कारण
ग्रामीण इन मूर्तियों को जहां धार्मिक मान्यताओं से जोड़ते हैं वहीं पुरात्तव विभाग इन मूर्तियों के निर्माण के पीछे वैज्ञानिक कारणों का हाथ मानते हैं. उनका कहना है कि अपर्दन की वजह से पत्थरों ने विभिन्न आकार ले लिया है, जिसे लोग भगवान के रूप में पूजने लगे हैं.


सूतियांबे गढ़ मूर्तियों को संरक्षण की है आवश्यकता
विखंडित अवस्था में मूर्ति को लेकर भू-गर्भ शास्त्री नीतीश प्रियदर्शी का कहना है कि इन मूर्तियों को संरक्षण की आवश्यकता है क्योंकि इन मूर्तियों के शोघ से इतिहास का पता चल सकता है. अपने शुरुआती काल में ये सही होंगे लेकिन आज टूटी-फूटी अवस्था में हो गए हैं. इसे ऐतिहासिक धरोहर के रूप में बचाकर रखने की जरूरत है ताकि आने वाले पीढ़ी भी इसके बारे में जान सके.


ग्रामीण मिलकर करा रहे हैं सूतियांबे गढ़ में मंदिर का निर्माण
ग्रामीण बताते हैं कि मंद्रा मुंडा का शासन छोटा नागपुर से लेकर गया तक फैला हुआ था. मंद्रा मुंडा के बाद छोटानागपुर की रियासत नागवंशी राजाओं के पास चली गई लेकिन उस प्रतापी राजा के मंदिर का निशान अब मिट चुका है लेकिन जो भी मूर्तियां हैं वह दुर्लभ है. इलसिए उसे बचाने के लिए गांव वाले खुद चंदा इकट्ठा करके मंदिर बनाने की तैयारी में जुट गए हैं.

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