लखनऊः गणेश उत्सव के आखिरी दिन जब गणेश जी की प्रतिमा विसर्जित की जाती है तो हर किसी की आंखों में आंसू और होठों पर एक ही जयकारा 'गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ती मोरया' का उद्घोष होता रहता है. क्या आपको पता है कि 'गणपति बप्पा मोरया' के जयकारे क्यों लगाए जाते हैं. इस जयकारे की शुरुआत कब से हुई? चलिए इस जयकारे के पीछे की कहानी हम आपको बताते हैं.
गणेश भक्त के नाम से जुड़ी है जयकारे की कहानी
चौदहवीं सदी में पुणे के समीप चिंचवाड़ मोर गांव में मोरया गोसावी नामक गणेश भक्त रहते थे. मोरया गोसावी के माता-पिता कर्नाटक से आकर यहां बस गए थे. मान्यता है कि मोरया गोसावी गणेश जी के इतने बड़े भक्त थे कि गांव में ही स्थित मयूरेश्वर मंदिर में जीवित समाधि ले ली थी. ऐसा कहा जाता है कि भगवान गणेश ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारा नाम मेरे नाम के साथ युगों-युगों तक लिया जाएगा. तब से उन्हीं के नाम पर 'गणपति बप्पा मोरया' नामक जयकारे की शुरुआत हुई.
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