रांचीः इतिहास में भले ही आजादी की पहली लड़ाई के रूप में इतिहासकारों ने 1857 के सिपाही विद्रोह को जगह दी हो. लेकिन वास्तव में सिपाही विद्रोह से 2 साल पहले यानी 1855 में ही संथाल में अमर शहीद सिदो कान्हू, चांद भैरव, फूलो-झानो के नेतृत्व में संथाल विद्रोह हुआ था .जिसमें 20 हजार से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया था और अंग्रेजों को नाको चने चबवा दिया था. विद्रोह को दबाने अंग्रेजों ने साहिबगंज के भोगनाडीह में झारखंड के वीर सपूतों सिदो कान्हू को फांसी दे दी थी.
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हूल दिवस पर राजधानी सिदो कान्हू पार्क में अमर शहीद की प्रतिमा पर झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन, राज्यसभा सांसद महुआ माजी, कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय, पूर्व उपमुख्यमंत्री और आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो, कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की, विधायक शिल्पी नेहा तिर्की, राष्ट्रीय युवा शक्ति के उत्तम यादव, युवा राजद के रंजन यादव सहित बड़ी संख्या में नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सिदो कान्हू की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया.
झामुमो की नवविर्वाचित राज्यसभा सांसद महुआ माजी ने कहा कि आज भी राज्य के साथ केंद्र नाइंसाफी कर रहा है, इसलिए एक और हुल क्रांति की जरूरत है. वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री ने हुल क्रांति को याद करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मांग की कि वह ऐसी व्यवस्था कराएं की शहीदों के वंशज सम्मान के साथ जीवन यापन कर सकें. आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो ने कहा कि इतिहासकारों ने हूल क्रांति के साथ न्याय नहीं किया है. इसलिए अब समय है कि हुल क्रांति को फिर से परिभाषित कर इतिहास में इसे जगह दी जाएं क्योंकि यह आजादी की पहली क्रांति थी जिसमें 20 हजार से ज्यादा लोगों ने एक साथ भाग लिया था.
राष्ट्रीय युवा शक्ति से जुड़े युवाओं ने किया रक्तदानः हूल दिवस पर राष्ट्रीय युवा शक्ति से जुड़े युवाओं ने सिदो कान्हू पार्क में रक्तदान शिविर लगाकर बड़ी संख्या में रक्तदान किया. यहां एकत्रित किए गए रक्त सरकारी अस्पताल के ब्लड बैंक को दिया जाएगा ताकि थैलसीमिया से ग्रस्त बच्चों को खून की कमी ना हो.